Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 135
________________ * स्तेयम् * [ ११६ ] स्तेयो नरकगामी स्यात्, स्तेयं हेयं मनीषिणा। चौर्याद् येन निगृह्यत, नृपैर्मण्डितचोरवत् ॥ ११६ ।। पदच्छेदः-स्तेयी नरकगामी स्यात् स्तेयं हेयं मनीषिणा चौर्यात् येन निगृह्यत नृपैः मण्डितचोरवत् । - अन्वयः-स्तेयी नरकगामी स्यात्, मनीषिणा स्तेयम् हेयम्, येन चौर्यात् मण्डितचोरवत् नृपः निगृह्यत । शब्दार्थः-स्तेयी चोरी करने वाला, नरकगामी = नरक में जाने वाला, स्यात् होवे । मनीषिणा=बुद्धिमान के द्वारा, स्तेयं चोरी को, हेयम्=छोड़ना चाहिए। येन= जिससे, चौर्यात् =चोरी करने से, मण्डितचोरवत् =मण्डित चोर की तरह, नृपः राजाओं के द्वारा, निगृह्यत= दण्डनीय होवे। __श्लोकार्थः-चोरी करने वाला नरक में जाने वाला होता है। इसलिए बुद्धिमान को चोरी छोड़ देनी चाहिए। कारण कि चोरी करने से मण्डित चोर की तरह राजा के द्वारा दण्डाह अर्थात् दण्डनीय होता है। संस्कृतानुवादः-स्तेयी मानवो नरकगामी भवेत्, अतः विदुषा चौर्यं हेयम् । येन चौर्यात् मण्डितचोरवत् राज्ञा निगृह्यत ।। ११६ ॥ ( १२० )

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