Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 28
________________ [ १२ ] अतिघोरतपःकर्माऽनुष्ठानेभ्योऽपि दुष्करम् । पालयन् ब्रह्मचर्य स्यात् प्रशस्यः स्थूलभद्रवत् ।। १२ ॥ पदच्छेदः-अतिघोरतपःकर्मानुष्ठानेभ्यः अपि दुष्करम्, पालयन् ब्रह्मचर्यं स्यात् प्रशस्यः स्थूलभद्रवत् । अन्वयः-अतिघोरतपःकर्मानुष्ठानेभ्यः अपि दुष्करं ब्रह्मचर्य पालयन् प्रशस्यः स्यात् स्थूलभद्रवत् । शब्दार्थः-तपश्च कर्म च अनुष्ठानं च तपःकर्मानुष्ठानानि अतिघोराणि च तानि तपःकर्मानुष्ठानानि तेभ्यः अतिघोरतपःकर्मानुष्ठानेभ्यः अति भयंकर तपकर्म और अनुष्ठानों से, अपि=भी। दुष्करं कठिन, ब्रह्मचर्य = ब्रह्मचर्यव्रत, पालयन्=पालन करते हुए, प्रशस्यः प्रशंसनीय, स्यात् होवे । स्थूलभद्रवत् स्थूलभद्र की तरह । श्लोकार्थः-अत्यन्त घोर तप और अनुष्ठानों से भी अत्यन्त कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मानव स्थूलभद्र की तरह प्रशंसा का पात्र बनता है । ___ संस्कृतानुवादः-अतिघोरतपःकर्मानुष्ठानेभ्योऽपि अतिकठिनं ब्रह्मचर्य पालयन् मानवः प्रशंसापात्रं भवति । यथा स्थूलभद्रः प्रशंसापात्रम भवत् ।। १२ ।। .

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