________________
* समता *
[ २६ ] श्रामण्यसारभूतायाः, समतायाः प्रभावतः । संसारपारगामीस्याच्छरीरी कूरगट्ट (ड्डु)वत् ॥२६॥
पदच्छेदः-श्रामण्यसारभूतायाः समतायाः प्रभावतः संसारपारगामी स्यात् शरीरी कूरगट्ट (ड्डु) वत् ।
अन्वयः-शरीरी कूरगट्टवत् श्रामण्यसारभूतायाः समतायाः प्रभावतः संसारपारगामी स्यात् ।
शब्दार्थः-शरीरी देहधारी मानव, कूरगट्ट (ड्डु) वत्=कूरगट्ट (ड्डु) की तरह, श्रामण्यसारभूतायाः= साधुओं के लिए सारभूत, समतायाः समता के, प्रभावतः प्रभाव से, संसारस्य पारं गच्छतीति संसारपारगामी संसार के पार पहुंचने वाला, स्यात् होवे ।
श्लोकार्थः देहधारी मानव कूरगट्ट (ड्डु) की तरह साधुओं के लिए सारभूत समता के प्रभाव से संसार रूपी समुद्र के पार पहुँचने वाला होवे ।
संस्कृतानुवादः-देहधारी मानवः कूरगट्ट (ड्डु) वत् श्रामण्यसारभूतायाः समतायाः प्रभावतः संसारपारगामी भवेत् ॥ २६ ॥
( ३० )