Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ * नियमः * [ ३३ ] निर्मितः फलदोऽल्पोऽपि, नियमः स्थिरचेतसाम् । ग्रन्थिमात्रकृतप्रत्या - ख्याने यक्षकर्पाद्दवत् ॥ ३३ ॥ पदच्छेदः - निर्मितः फलद: अल्पः अपि नियमः स्थिरचेतसाम् । ग्रन्थिमात्रकृतप्रत्याख्याने यक्षकपद्दिवत् फलदः भवति । । अन्वयः - स्थिरचेतसाम् अल्पः अपि निर्मितः नियमः ग्रन्थिमात्र कृतप्रत्याख्याने यक्षकपर्द्दिवत् फलदः भवति । शब्दार्थः- स्थिरचेतसाम् - स्थिर बुद्धि वालों का, निर्मितः = किया गया, अल्पः अपि = थोड़ा भी, नियमः = नियम, ग्रन्थिमात्रकृतप्रत्याख्याने = ग्रन्थिमात्र के लिए किये गये प्रत्याख्यान के विषय में, यक्षकर्पाद्दवत् = यक्षकपद्द की तरह, फलदः = फल प्रदान करने वाला, भवति = होता है । श्लोकार्थ :- स्थिर बुद्धि वाले मनुष्यों के लिए किया गया छोटा भी नियम, ग्रन्थिमात्र के लिए किये गये प्रत्याख्यान ( पच्चक्खारण- नियम ) के विषय में यक्षकर्पाद्द की तरह फलप्रद होता है । संस्कृतानुवादः - दृढधीमतां श्रल्पोऽपि कृतः नियम: ग्रन्थिमात्रकृत प्रत्याख्याने यक्षकपद्दिवद् फलप्रदो भवति ।। ३३ ।। ( ३४ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144