Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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* क्षमा *
[ ३६ ] असह्यान्यपि कष्टानि, शरीरी क्षमतेतराम् । क्षमाकवचसंनद्धः, सुकोशलमुनिर्यथा ॥३६ ॥
पदच्छेदः-असह्यानि अपि कष्टानि शरीरी क्षमतेतराम् । क्षमाकवचसंनद्धः सुकोशलमुनिः यथा ।
अन्वयः-क्षमाकवचसन्नद्धः शरीरी असह्यानि अपि । कष्टानि क्षमतेतराम्, यथा सुकोशलमुनिः ।
शब्दार्थ:-क्षमायाः कवचेन सन्नद्धः क्षमाकवचसन्नद्धः= क्षमारूपी कवच से ढका हुआ, शरीरी देहधारी मानव, असह्यानि नहीं सहन करने योग्य, कष्टानि दुःखों को, क्षमतेतराम् = सहन करें। यथा=जैसे, सुकोशलमुनिः= सुकोशल नामक मुनि।
श्लोकार्थः-क्षमा रूपी कवच से ढका हुआ मानव असह्य कष्टों को भी सहन करे। जैसे सुकोशल मुनि ने कष्टों को सहन किया था ।
संस्कृतानुवादः-क्षमाकवचमिताङ्गः मानवः असह्यानि अपि कष्टानि क्षमतेतराम् । यथा सुकोशलमुनिना कष्टानि सोढानि ।। ३६ ॥

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