Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 84
________________ * धर्माऽऽचरणम् * [ ६८ ] धर्मार्थोपार्जनं प्राज्ञो, यथावसरमाचरेत् । . कृषीबल इव स्वीयं, हारयेन्न द्वयं परम् ॥ ६८ ॥ पदच्छेदः-धर्मार्थोपार्जनम् प्राज्ञः यथा अवसरम् आचरेत् कृषीबल इव स्वीयम् हारयेत् न द्वयं परम् । अन्वयः-प्राज्ञः धर्मार्थोपार्जनम् यथावसरम् आचरेत् । परं कृषीबल इव स्वीयं द्वयं न हारयेत् । शब्दार्थः-प्राज्ञः बुद्धिमान्, धर्मार्थोपार्जनम् धर्म और अर्थ का उपार्जन, यथावसरम् = यथासमय, प्राचरेत्= आचरण करे। परं परन्तु, कृषीबल इव=कृषीबल की तरह, स्वीयं = अपने, द्वयं इहलोक और परलोक को। न हारयेत्न गुमावे । ____श्लोकार्थः-बुद्धिमान् मनुष्य धर्म और अर्थ का उपार्जन यथासमय करे । किन्तु कृषीबल की तरह अपने इस लोक और परलोक को नष्ट न करे। . संस्कृतानुवादः-धीमान् यथावसरम् धर्मार्थोपार्जन कुर्यात् । परं च सः कृषीबल इव स्वीयं लोकद्वयसुखं न हारयेत् ।। ६८ ।। ( ६६ )

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