Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 26
________________ * शीलम् [ १० ] परदारपरित्याग-ब्रह्मचर्यं य प्राचरेत् । स कष्टान्मुच्यते तत्र, सुदर्शननिदर्शनम् ॥ १० ॥ पदच्छेदः - परदारपरित्याग ब्रह्मचर्यं यः श्राचरेत् सः कष्टात् मुच्यते तत्र सुदर्शननिदर्शनम् । अन्वयः - यः परदारपरित्याग ब्रह्मचर्यं आचरेत् सः कष्टान् मुच्यते तत्र सुदर्शननिदर्शनम् । शब्दार्थः - परदाराणां परित्यागस्तेन ब्रह्मचर्यम् परदारपरित्यागब्रह्मचर्यम् = परायी स्त्री के परित्याग से ब्रह्मचर्य, यः = जो मनुष्य, प्राचरेत् = पालन करे । सः—वह मनुष्य, कष्टात् = दुःख से, मुच्यते = मुक्त होता है । तत्र = उसमें सुदर्शननिदर्शनम् = सुदर्शन श्रेष्ठी उदाहरण है । , श्लोकार्थ :- जो मनुष्य परदारा अर्थात् परायी स्त्री के परित्याग से ब्रह्मचर्य को श्राचरता है, वह मनुष्य दुःख से मुक्त होता है । उसमें सुदर्शन श्रेष्ठी उदाहरण है, अर्थात् सुदर्शन श्रेष्ठी का दृष्टान्त विद्यमान है । संस्कृतानुवादः - यो मनुष्यः परदारापरित्यागरूपं ब्रह्मचर्यं पालयति सः कष्टेभ्यः मुच्यते, यथा तत्र सुदर्शन - श्रेष्ठ्याः उदाहरणमस्ति ।। १० ।। ( ११ )

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