Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 36
________________ * प्रतिमा * [ २० ] भवेद् भावनया हीन-महदर्शनमङ्गिनाम् । भवान्तरेऽपि बोधाय, कमलश्रेष्ठिपुत्रवत् ॥ २० ॥ पदच्छेदः-भवेद् भावनया हीनम् अर्हत् दर्शनम् अङ्गिनाम् भवान्तरे अपि बोधाय कमलश्रेष्ठिपुत्रवत् । अन्वयः-अङ्गिनाम् भावनया हीनम् अर्हद्-दर्शनम् भवान्तरे अपि कमलश्रेष्ठिपुत्रवत् बोधाय भवेत् । शब्दार्थः-अङ्ग अस्ति येषान्ते तेषाम् अङ्गिनाम्= प्राणियों के, भावनया भावना से, हीनम् रहित, अर्हतः दर्शनम् अर्हद्दर्शनम् =अर्हन्त भगवन्त का दर्शन, भवान्तरे= दूसरे जन्म में, अपि भी, कमलश्रेष्ठिपुत्रवत् कमल सेठ के पुत्र की तरह, भवेत् होवे । श्लोकार्थः-प्राणिमात्र के लिए भावना से रहित श्री अरिहन्त परमात्मा का दर्शन दूसरे जन्म में भी कमल सेठ के पुत्र की तरह प्रतिबोध के लिए होता है । संस्कृतानुवादः-प्राणिनां भावनया हीनं-रहितमपि भगवतः अर्हतः दर्शनं भवान्तरेऽपि कमलश्रेष्ठिपुत्र इव बोधाय जायेत ।। २० ॥ ( २१ )

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