________________
ब्रह्मचर्य-दर्शन होती रहती है। कभी तेज हो जाती है, तो तेज दिखाई देती है और कभी मंद हो जाती है, तो मंद दिखाई देती है। परन्तु मूलतः उसका कभी नाश नहीं होता।
___इस प्रकार के दर्शन की मान्यता ने मनुष्य जीवन के उच्च आदर्श की चमक को मलिन कर दिया है। मनुष्य, जो अपने जीवन को अन्य जीवनों से श्रेष्ठ बनाने की दौड़ में था, एवं जीवन की ऊंचाइयों को छूने का प्रयत्न कर रहा था, उक्त दर्शन की भावना ने एक तरह से उसके मन को मार दिया और उसे हताश एवं निराश बना दिया ।
इस दर्शन ने मनुष्य के सामने निराशा का अभेद्य अन्धकार फैलाकर निष्क्रियता का मार्ग रखा। इस दर्शन का अर्थ है, कि हम हथियार डाल दें। क्रोध आता है और प्रयत्न किया जाता है. कि उसे समाप्त कर दिया जाय, किन्तु फिर भी क्रोध आ जाता है, तो क्या उस क्रोध के आगे हथियार डाल दें। समझ लें, कि यह जाने वाला नहीं है ? न इस जन्म में और न अगले जन्म में ही ।
इसका अर्थ यही हुआ, कि कुछ करने-धरने की जरूरत ही नहीं है । इस तरह तो जितनी भी बुराइयाँ हैं, वे सब हम को घेर कर खड़ी हो जाती हैं। मनुष्य का कर्तव्य है, कि वह उनसे लड़े। मगर यह दर्शन कहता है, कि कितना ही लड़ो, जीत कभी नहीं होगी । मनुष्य अपने विकारों से मुक्त नहीं हो सकता।
यदि कोई डाक्टर बीमार के पास आकर यह कह दे, कि मैं इलाज तो करता हूँ, किन्तु बीमारी जाने वाली नहीं है । इस से कदापि मुक्ति नहीं हो सकती । बीमार को घुल-घुल कर मरना है।
जो डॉक्टर या वैद्य यह कहता है, उस से मरीज का क्या लाभ होना-जाना है। अगर वह चिकित्सा भी करा रहा है तो उस का मूल्य ही क्या है ?
जिस दर्शन ने इस प्रकार की निराशा जीवन में पैदा कर दी है, उससे आत्मा का क्या लाभ हो सकता है ? .
इस दर्शन के विपरीत दूसरा दर्शन कहता है, कि आत्मा में बुराई है ही नहीं, सब अच्छाइयाँ ही हैं, और प्रत्येक आत्मा अनन्त-अनन्त काल से पर-ब्रह्म रूप ही है । आत्मा में जो विकार और वासनाएं मालूम होती हैं, वे वास्तव में आत्मा में नहीं हैं । वे तो तुम्हारी बुद्धि में, कल्पना में हैं। यह तो एक प्रकार का स्वप्न है, विभ्रम है, एक प्रकार का मिथ्या विकल्प है, जो सत्य नहीं है।
इस दर्शन की मान्यता के अनुसार भी, विकारों से लड़ने की जो चेतना एवं प्रेरणा पैदा होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती है ।
कल्पना कीजिए, एक आदमी बीमार पड़ा है। व्यथा से कराह रहा है, उसकी हालाः बड़ी खराब है। यदि उसे वैद्य यह कहे, कि तू तो बीमार ही नहीं है, तो क्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org