Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 132
________________ ब्रह्मचर्य का प्रभाव १२३ भगवान् महावीर का मार्ग कहता है, कि ब्रह्मचर्य की साधना के लिए समस्त इन्द्रियों पर अंकुश रखना चाहिए । हम अपने कानों को इतना पवित्र बनाए रखने का प्रयत्न करें, कि जहाँ गाली-गलौज का वातावरण हो और बुरे से बुरे शब्द सुनने को मिल रहे हों, वहाँ भी हम विचलित न हों, विपरीत वातावरण से प्रभावित न हों। यदि शक्ति है, तो वातावरण को बदल दें, या उससे प्रभावित न हों, और यदि इतनी शक्ति नहीं है, तो साधक के लिए उससे अलग रहना ही श्रेयस्कर है। हमें कानों के द्वारा कोई भी विकारोत्तेजक दूषित शब्द मन में प्रविष्ट नहीं होने देना चाहिए। जब एक बार गन्दे शब्द मन में प्रवेश पा जाते हैं, तब वहाँ वे जड़ भी जमा सकते हैं । वे मन के किसी भी कोने में जम सकते हैं और धीरे-धीरे पनप भी सकते हैं, क्योंकि मन जल्दी भूलता नहीं है । जो शब्द उसके भीतर गूंजते रहते हैं, अवसर पाकर अनजान में ही वे जीवन को आक्रान्त कर लेते हैं । अतएव ब्रह्मचर्य के साधक को अपने कान पवित्र रखने चाहिएँ । वह जब भी सुने, पवित्र बात ही सुने, और जब कभी प्रसंग आए, तो पवित्र बात ही सुनने को तैयार रहे। गन्दी बातों का डट कर विरोध करना चाहिए, मन के भीतर भी और समाज के प्रांगण में भी । घरों में गाए जाने वाले गन्दे गीत तुरन्त ही बन्द कर देने की आवश्यकता है। मुझे मालूम हुआ है कि विवाह-शादियों के अवसर पर बहुत-सी बहिनें गन्दे गीत गाती हैं । जहाँ विवाह का पवित्र वातावरण है, आदर्श है, और जब दो साथी अपने गृहस्थ-जीवन का मंगलाचरण करते हैं, उस अवसर पर गाए गए गन्दे गीत पवित्र वातावरण को कलुषित करते हैं, और मन में दुर्भाव उत्पन्न करते हैं। जिस समाज में इस प्रकार का गन्दा वातावरण है, बुरे विचार हैं और कलुषित भावनाएं एवं परम्पराएं हैं, उस समाज की उदीयमान सन्तति किस प्रकार सुसंस्कारी एवं उज्ज्वल चरित्रशाली बन सकती है ? जो समाज अपने बालकों और बालिकाओं के हृदय में गलत परम्पराओं के द्वारा जहर उड़ेलता रहता है, उस समाज में पवित्र चारित्रशील और सत्त्व-गुणी व्यक्तियों का परिपाक होना कितना कठिन है ? ___ आश्चर्य होता है, कि जिन्होंने प्रतिदिन वर्षों तक सामायिक की, आगमों का प्रवचन सुना, वीतराग प्रभु और महान् आचार्यों की वाणी सुनी और संतों की संगति एवं उपासना की, उनके मुख से किस प्रकार अश्लील और गन्दे गीत निकलते हैं ? शिष्ट और कुलोन परिवार किस तरह इन गीतों को बर्दाश्त करते हैं ? कोई भी शीलवान् व्यक्ति कैसे इन गीतों को सुनता है ? अश्लील गीत समाज के होनहार कुमारों और कुमारिकाओं के हृदय में वासना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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