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ब्रह्मचर्य-दर्शन ब्रह्मचारी तप और श्रम का जीवन व्यतीत करता हुआ समस्त राष्ट्र के उत्थान में सहायक होता है। आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणमिच्छते ।
-अथर्व०,१११५।१७ आचार्य ब्रह्मचर्य द्वारा ही ब्रह्मचारियों को अपने शिक्षण और निरीक्षण में लेने की योग्यता और क्षमता को संपादन करता है । ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्र वि रक्षति ।
-अथर्व ११।५।१७ ब्रह्मचर्य के तप से ही राजा अपने राष्ट्र की रक्षा में समर्थ होता है । ___ इन्द्रो ह ब्रह्मचर्येण देवेभ्यः स्वराभरत् ।
-अथर्व ११३५२१६ संयत जीवन से रहने वाला मनुष्य ब्रह्मचर्य द्वारा ही अपनी इन्द्रियों को पुष्ट और कल्याणोन्मुख बनाने में, उन्हें कल्याण की ओर प्रवृत्त करने में, समर्थ होता है । ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाघ्नत ।
-अथर्व १११५११६ देवों ने ब्रह्मचर्य और तप की साधना से मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली। पराचः कामाननुयन्ति बालास्,
ते मृत्योर्यन्ति विततस्य पाशम् । अथ धीरा अमृतत्वं विदित्वा । ध्र वमध्रुवेष्विह न प्रार्थयन्ते ।
-कठोपनिषद् २।१।२ मूढ़ लोग ही बाह्य विषयों के पीछे लगे रहते हैं । वे मृत्यु अर्थात् आत्मा के अधःपतन के विस्तृत जाल में फंस जाते हैं। परन्तु विवेकी लोग अमृतत्व (अपने शाश्वत स्वरूप) को जानकर, अध्र व (अनित्य) पदार्थों में नित्य तत्त्व को कामना नहीं करते हैं। सत्येन लभ्यस्तपसा ह येष आत्मा,
सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम् ।
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