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ब्रह्मचर्य दर्शन निरखी ने नव-यौवना, लेश न विषय-निदान । गणे काष्ठनी पूतली, ते भगवान समान ॥१॥ आ सघला संसारनी, रमणी नायकरूप । ए त्यागी, त्याग्यु बधुं, केवल शोकस्वरूप ॥२॥ एक विषय ने जीतता, जीत्यौ सौ संसार । नृपति जीतता जीतिए, दल पुर ने अधिकार ॥३॥ विषयरूप अंकूरथी, टले ज्ञान ने ध्यान । लेश मदिरापान थी, छाके ज्यम अज्ञान ।।४।। जे नव वाड विशुद्ध थी, धरे शियल सुखदाइ । भव तेनो लव पछी रहे, तत्व-वचन ए भाइ ॥५॥ सुन्दर शीयलसुरतरू, मन वाणी ने देह । जे नरनारी सेवशे, अनुपम फल ते लेह ॥६॥ पात्र बिना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान । पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान ॥७॥
-श्रीमद् राजचन्द्र
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