Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ २३८ ब्रह्मचर्य दर्शन निरखी ने नव-यौवना, लेश न विषय-निदान । गणे काष्ठनी पूतली, ते भगवान समान ॥१॥ आ सघला संसारनी, रमणी नायकरूप । ए त्यागी, त्याग्यु बधुं, केवल शोकस्वरूप ॥२॥ एक विषय ने जीतता, जीत्यौ सौ संसार । नृपति जीतता जीतिए, दल पुर ने अधिकार ॥३॥ विषयरूप अंकूरथी, टले ज्ञान ने ध्यान । लेश मदिरापान थी, छाके ज्यम अज्ञान ।।४।। जे नव वाड विशुद्ध थी, धरे शियल सुखदाइ । भव तेनो लव पछी रहे, तत्व-वचन ए भाइ ॥५॥ सुन्दर शीयलसुरतरू, मन वाणी ने देह । जे नरनारी सेवशे, अनुपम फल ते लेह ॥६॥ पात्र बिना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान । पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान ॥७॥ -श्रीमद् राजचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250