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बौद्ध-सूक्त सीलगन्धसमो गन्धो कुतो नाम भविस्सति । यो समं अनुवाते च पटिवातेच वायति ।।
-विशुद्धिमार्ग परिच्छेद १ शील की गंध के समान दूसरी गंध कहां होगी ? जो कि हवा के बहने की ओर तथा उसके विपरीत उल्टी हवा की ओर भी एक समान बहती है।
सग्गारोहणसोपानं । अयं सोलसमं कुतो। द्वारं वा पन निव्वान-नगरस्स पवेसने ।।
-विशुद्धिमार्ग परिच्छेद १ स्वर्गारोहण के लिए शील के समान दूसरी सीढ़ी कहाँ है ? और निर्वाणनगर में प्रवेश के लिए शील के समान दूसरा द्वार कहाँ है ? ।
तृप्ति स्तीन्धनरग्नेम्भिसा लवणाम्भसः । नापि कामैः सतृष्णस्य तस्मात्कामा न तृप्तये ।।
-सौन्दरनन्द काव्य ११,३२ जलावन से अग्नि की, जल से समुद्र की और कामोपभोग से तृष्णावान् की तृप्ति नहीं है, इसलिए कामोपभोग तृप्तिदायक नहीं है ।
अतप्तौ च कुतः शान्तिरशान्तौ च कुतः सुखम् । असुखे च कुत: प्रीतिरप्रीती च कुतो रतिः ।।
-सौन्दरनन्द काव्य ११,३३ ॥ तृप्ति नहीं होने पर शान्ति कहाँ, शान्ति नहीं होने पर सुख कहाँ, सुख नहीं होने पर प्रीति कहाँ, और प्रीति नहीं होने पर रति (आनन्द) कहाँ ?
संपत्ती वा विपत्तौ वा दिवा वा नक्तमेव वा । कामेषु हि सतृष्णस्य न शान्तिरुपपद्यते ॥
-सौन्दरनन्द काव्य ११,३७ ॥ समृद्धि में या विपत्ति में, दिन को या रात को, विषयों की तृष्णा रखने वाले को (कभी) शान्ति नहीं होती है ।
रागोदामेन मनसा सर्वथा दुष्करा धृतिः । सदोषं सलिलं दृष्ट्वा पथिनेव पिपासुना ।।
-सौन्दरनन्द काव्य १२,२७ ॥
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