Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 238
________________ व्रतेन दीक्षामाप्नोति, दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् । दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥ - यजु० १६।३० व्रताचरण से ही मनुष्य को दीक्षा अर्थात् उन्नत जीवन की योग्यता प्राप्त होती है । दीक्षा से दक्षिणा अथवा प्रयत्न की सफलता प्राप्त होती है । दक्षिणा से अपने जीवन के आदर्शों में श्रद्धा, और श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है । तस्मिन् देवा: संमनसो स दाधार पृथिवीं दिवं वैदिक-सूक्त -अथवं ० ११, ५, १ ब्रह्मचारी के प्रति सब देवता लोग अनुकूल होकर रहते हैं और वह पृथिवी और द्यौ को धारण करता है । भवन्ति । च । ब्रह्मचारिणं पृथग्देवा अनुसंयन्ति Jain Education International पितरो देवजनाः । सर्वे ॥ अथर्व ११,५,२ रक्षा करने वाले पितर देव और अन्य सब देवता लोग ब्रह्मचारी के पीछे चलते हैं । ब्रह्मचारी ब्रह्म भ्राजद् बिर्भात । तस्मिन्देवा अधि विश्वे समोताः । - अथर्व ० ११।५।२४ ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करने वाला प्रकाशमान ब्रह्म (समष्टि-रूप- ब्रह्म अथवा ज्ञान) को धारण करता है और उसमें समस्त देवता ओत-प्रोत होते हैं (अर्थात्, वह समस्त दैवी शक्तियों से प्रकाश और प्रेरणा को प्राप्त कर सकता है) ब्रह्मचारी :: 'श्रमेण लोकांस्तपसा पिपत्ति । -- अथर्व ११।५२४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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