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ब्रह्मचर्य दर्शन
हो जाते हैं। प्राणायाम से शरीर में कान्ति और मुख पर तेज आता है । यह ओज धातु को बढ़ाता है और वीर्य का आकर्षण कर साधक ऊर्ध्वरेता बनता है। प्राणायाम के शास्त्रों में अनेक भेद बताए गए हैं -किन्तु यहाँ पर उनमें से कुछ ही प्राणायामों का वर्णन किया गया है, जिनका सम्बन्ध विशेष रूप से ब्रह्मचर्य की साधना से है। सामान्य प्राणायाम :
प्राणायाम की साधना सामान्य प्राणायाम से करनी चाहिए क्योंकि इसे स्त्री और पुरुष, युवा और वृद्ध, बलवान एवं बलहीन सभी कर सकते हैं। इससे हानि की कोई सम्भावना नहीं रहती । प्राणायाम में तीन तत्व मुख्य हैं-पूरक, कुम्भक और रेचक । जैसा कि पहले कहा जा चुका है, बाहार की वायु को अन्दर ले जाना पूरक है, उसे कुछ काल के लिए अन्दर रोके रखना कुंभक है, और फिर धीरे-धीरे बाहर निकाल देना रेचक है । श्वास-प्रश्वास की इसी प्रक्रिया को योग में प्राणायाम कहा जाता है। सामान्य प्राणायाम की विधि :
मेरुदण्ड सीधा करके पालथी मार कर स्वस्तिकासन पर बैठ जाओ, सिर का भाग कुछ आगे की ओर झुकालो, ठोड़ी छाती से न लगे और गर्दन सीधी रहे, फिर दोनों नथुओं से बहुत धीरे-धीरे श्वास को अन्दर खींचो, छाती पर दबाव.न पड़े, खींचना और निकालना पेट की नाभि के द्वारा हो । ध्यान भी नाभि-कमल पर रहे। जितनी वायु खींची जा सके, उतनी खींच लो, आँतों और फेफड़ों में वायु भर जाने से पेट और छाती उस समय फूल जाएँगे। फिर उस वायु को कुछ सैकण्ड या मिनट अपनी शक्ति के अनुसार अन्दर रोके रहो, जब सहन न हो, तब बहुत ही धीरे-धीरे उसे निकाल दो । यहाँ तक कि पेट व छाती भीतर को दब जाएँ। ज़ब पूरी निकाल चुको, तब थोड़ी देर बाहर रोक लो। यह एक प्राणायाम हुआ। ऐसे तीन प्राणायाम करो। सूर्य-मेवी प्राणायाम :
जब सामान्य प्राणायाम का अभ्यास ठीक हो जाए, तब सूर्य-भेदी का अभ्यास करना चाहिए । पूरक, कुम्भक और रेचक ये तीनों क्रियाएँ इसमें भी करनी होती हैं। सूर्य-भेदी प्राणायाम में एक नथने से पूरक किया जाता है और दूसरे से रेचक किया जाता है । दूसरी बार में जिससे रेचक किया था, उससे पूरक करना होता है । इस प्रकार एक दूसरे की अदला-बदली होती रहती है।
योग-शास्त्र के अनुसार दाहिने नथने को सूर्य-स्वर और बाएँ नथने को चन्द्र स्वर कहा जाता है । गहरे ध्यान के समय ही दोनों नथनों से बराबर श्वास निकलता है । अन्य समयों में एक हल्का और दूसरे से तीव्र श्वास आता जाता रहता है । इस
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