Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 207
________________ १६८ ब्रह्मचर्य दर्शन चौथा संकल्प : आप अपने जीवन में जो भी नयी आदत डालना चाहते हैं, उसका प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करते रहिए । प्रतिदिन के अभ्यास से वह आदत भविष्य में मनुष्य का स्वभाव बन जाता है और जो स्वभाव बन जाता है, उसमें किसी प्रकार का भय और खतरा नहीं रहता। यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं, तो इसका अभ्यास आपको पूरी दृढता के साथ करना चाहिए । यह ठीक है कि किसी भी व्रत और प्रतिज्ञा का पालन करते समय, बाधा और रुकावट आती है, किन्तु उस बाधा और रुकावट को दूर करते रहना भी तो मनुष्य का ही कर्तव्य है। खाली मन शैतान का घर होता है। अतः एक क्षण के लिए भी आप अपने मन को खाली न रखें । उसे किसी न किसी शुभ संकल्प में एवं शुभ कार्य में संलग्न रखें। जिस बाग में पुष्प और फल पैदा होते हैं, वहाँ घास-पात भी उत्पन्न हो सकता है । यदि बाग़वान सावधानी न रखे, तो मनुष्य की मनोभूमि में बुरे विचारों का घासपात भी पैदा हो सकता है और उसी मनोभूमि में अच्छे विचारों के पुष्प और शुभ संकल्पों के मधुर फल भी उत्पन्न हो सकते हैं। मनुष्य का मन भले ही कितना भी चंचल क्यों न हो, किन्तु उसे स्वाध्याय, ध्यान और चिन्तन के क्षेत्र में ले जाकर आसानी से स्थिर किया जा सकता है । एक कार्य करते-करते यदि आप थकावट का अनुभव करें, तो दूसरा कार्य हाथ में ले लीजिए। क्योंकि काम को बदल देना ही मा का आराम है । काम को छोड़ देने से तो यह तबाही मचा देता है। ध्यान रखो, भूलकर भी कभी ठाली मत बैठो । यदि आपके पास कुछ भी कार्य करने के लिए न हो, तो मन में पवित्र विचार और पवित्र संकल्प ही भरते रहो । मन में कभी भी विकल्प और विकारों की तरंग मत उठने दो। इससे बढ़कर ब्रह्मचर्य की साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए. अन्य कोई कारगर साधन नहीं हो सकता । ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में जो चार प्रकार के संकल्प बतलाए गए हैं, वे तभी सफल हो सकते हैं, जबकि आप इन विचारों को अपने जीवन के धरातल पर उतारने का प्रामाणिकता से प्रबल प्रयत्न करेंगे। प्रयत्न से सब कुछ साध्य हो सकता है। लगन के बिना तो साधारण-से-साधारण कार्य भी सम्पन्न नहीं हो पाता। इसके विपरीत, पूरी इच्छा-शक्ति से और लगन के साथ यदि किसी कार्य में जुटा जाए, तो वह सहज और सरल बन जाता है। फिर उसके करने में मनुष्य को रस मिलने लगता है । क्योंकि जिस कार्य में मनुष्य तन्मय हो जाता है, फिर वह कार्य उसके लिए दुस्साध्य नहीं रहता। कमजोर से कमजोर आदमी. भी अपनी शक्ति को एक लक्ष्य पर लगाकर बहुत कुछ कर सकता है। इसके विपरीत, ताकतवर से ताकतवर आदमी भी अपनी शक्ति को छिन्न-भिन्न करके कुछ भी नहीं कर सकता। मनुष्य के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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