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ब्रह्मचर्य-दर्शन
ब्रह्मचयं प्रेमी साधक को शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श – इन पाँच प्रकार के काम-गुणों का सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए ।
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दुज्जए कामभोगे य, निच्चसो परिवज्जए । काठाणाणि सग्वाणि, वज्जेज्जा पणिहाणवं ।
एकाग्र मन रखने वाला ब्रह्मन्वारी दुर्जय कामभोगों को सदा के लिए त्याग दें और सर्व प्रकार के शंकास्पद स्थानों का परित्याग करे ।
- उत्त० अ० १६, गा० १४
मणुन्नेसु
नाभिनिवेस ।
विसएसु पेमं अणिच्च तेसि विन्नाय परिणामं पुग्गलाण य ।
,
- दश० अ० ८, गा० ५६
शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श रूप समस्त पुद्गलों के परिणामों को अनित्य समझ कर ब्रह्मचारी साधक मनोज्ञ विषयों में आसक्त न बने ।
रम्यमापात मात्र किपाकफलसंकाशं,
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यत्, यत् परिणामेऽतिदारुणम् ।
तत्कः
सेवेत मैथुनम् ॥
—योग-शास्त्र २,७७
मैथुन प्रारम्भ में तो रमणीय मालूम पड़ता है, किन्तु परिणाम में अत्यन्त भयानक है । वह किंपाक फल के समान है । जैसे किपाक फल सुन्दर दिखलाई देता है, किन्तु उसके खाने से मृत्यु हो जाती है, उसी प्रकार मैथुनसेवन ऊपर-ऊपर से रमणीय लगने पर भी आत्मा की घात करने वाला है। कौन विवेकवान् पुरुष ऐसे मैथुन का सेवन करेगा ?
स्त्रीसम्भोगेन यः कामज्वरं प्रतिचिकीर्षति । स हुताशं घृताहुत्या, विध्यापयितुमिच्छति ॥
— योग- शास्त्र २,८१
जो पुरुष विषय-वासना का सेवन करके काम ज्वर का शमन करना चाहता है, वह घृत की आहुति के द्वारा आग को बुझाने की इच्छा करता है ।
वरं
ज्वलदयस्तम्भ - परिरम्भो
विधीयते ।
न
पुनर्नरक — द्वार - रामा - जघन - सेवनम् ।
- योग- शास्त्र २,८२ आग से सपे हुए लोहे के स्तम्भ का आलिंगन करना श्रेष्ठ है, किन्तु विषयवासना की पूर्ति के लिए नरक द्वार-स्वरूप स्त्रीजघन का सेवन करना उचित नहीं है ।
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