Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 213
________________ साधन खण्ड - ब्रह्मचर्य के आधार-बिन्दु : ब्रह्मचर्य को साधना के लिए और उसकी परिपूर्णता के लिए शास्त्रकारों ने कुछ साधन एवं उपायों का वर्णन किया है, जिनके अभ्यास से साधारण से साधारण साधक भी ब्रह्मचर्य का पालन आसानी से कर सकता है । यद्यपि ब्रह्मचर्य की साधना में बड़े-बड़े योगी, ध्यानी और तपस्वी भी कभी-कभी विचलित हो जाते हैं। इस प्रकार के एक नहीं, अनेक उदाहरण शास्त्रों में आज भी उपलब्ध होते हैं, फिर भी साधक को हताश और निराश होने की आवश्यकता नहीं है । जो मनुष्य भूल कर सकता है, वह अपना सुधार भी कर सकता है । जो मनुष्य पतन के मार्ग पर चला है, वह उत्थान के मार्ग की ओर भी चल सकता है । जो मनुष्य आज दुर्बल है, कल वह सबल भी हो सकता है । मनुष्य के जीवन का पतन तभी होता है, जब वह अपने अन्दर के अध्यात्म भाव को भूलकर, बाहर के लुभावने एवं क्षणिक भोगविलास में फंस जाता है। विषयासक्त मनुष्य किसी भी प्रकार की अध्यात्म-साधना को करने में सफल नहीं होता, क्योंकि उसके मानस में वासनाओं, कामनाओं और विभिन्न विकल्पनाओं का ताण्डव नृत्य होता रहता है । जो व्यक्ति नाना प्रकार के विकल्प और विकारों में फंसा रहता है, वह ब्रह्मचर्य तो क्या, किसी भी साधना में सफल नहीं हो सकता। समाधि : नव बाड़ ब्रह्मचर्य की साधना की सफलता के लिए भगवान् ‘महावीर ने दश प्रकार की समाधि और ब्रह्मचर्य की नव बाड़ों का उपदेश दिया है, जिसका आचरण करके ब्रह्मचर्य-व्रत की साधना करने वाला साधक अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है। ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए जिन उपाय एवं साधनों को परम प्रभु भगवान् महावीर ने समाधि और गुप्ति कहा है, लोक-भाषा में उन्हीं को बाड़ कहा जाता है। जिस प्रकार किसान अपने खेत की रक्षा के लिए, अथवा बागवान अपने बाग के नन्हे-नन्हे पौधों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर काँटों की बाड़ लगा देता है, जिससे कि कोई पशु उस खेत और पौधों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचा सके । साधना के क्षेत्र में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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