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प्राणायाम में सीधे हाथ के अंगूठे और बीच की अंगुली से काम लिया जाता है । इसका नियम यह है, कि बायाँ नथना अँगुली से बन्द करके दाहिने नथने से प्रथम श्वास खींचा जाए और फिर सीधे नथने को अंगूठे से दबा के श्वास को बाहर निकाला जाए। फिर इसी प्रकार बाएँ से खींचे और दाएँ से निकाले । वीर्याकर्षक प्राणायाम :
वीर्याकर्षक और वीर्यस्तम्भन-प्राणायाम के भी अनेक भेद हैं । अनेक साधक इसको विविध प्रकार से करते हैं। ये प्राणायाम वीर्य के समस्त दोषों को दूर करके साधक को ऊर्ध्वरेता बनाते हैं। इसकी साधता साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता। विधि :
अर्ध-सिद्धासन पर बैठ कर एड़ी को ठीक गुदा और अण्डकोष के बीच में प्रमेह-नाड़ी पर इस प्रकार जमाएं कि समस्त शरीर का भार उस पर आ जाए । मेरुदण्ड सीधा रहे, नाभि के बल से एक नथने से वायु खींचकर कुम्भक करें। कुम्भक के समय ढोड़ी को कण्ठ के गड्ढे में जमा दें। फिर वायु को दूसरे नथने से धीरे-धीरे निकालें और दृढ़ संकल्प करें कि वीर्य पेड़ से खिंचकर मस्तक की ओर चढ़ रहा है
और चढ़ गया है। इसके बाद बाह्य कुम्भक करें । उस समय यह संकल्प करें, कि खिचा हुआ वीर्य मस्तिष्क में भर गया है और वहाँ एकत्रित हो गया है। यह एक प्राणायाम हुआ । इस प्रकार के तीन या पाँच प्राणायाम नित्य प्रति शुद्ध एवं खुले स्थान में बैठ करके करें। इस प्राणायाम से वीर्य-दोष, स्वप्न-दोष और प्रमेह आदि वीर्य-सम्बन्धी समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं । शरीर की दुर्बलता नष्ट हो जाती है। शरीर कान्तिमय बन जाता है ।
प्राणायाम भले ही वह किसी भी प्रकार का क्यों न हो, मस्तिष्क में गरमी एवं खुश्की पैदा करता है। इसलिए योग-विशारदों ने भोजन में स्निग्ध दूध, दही एवं घृत जैसे पदार्थों का सेवन करते रहना बताया है। प्राणायाम की साधना करने वाले साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने वीर्य-पात के सभी प्रसंगों से बचता रहे । उसका भोजन सात्विक एवं शुद्ध होना चाहिए। राजस और तामस भोजन का वह परित्याग कर दे । तभी वह प्राणायाम की इस साधना से लाभ उठा सकता है।
ब्रह्मचर्य की साधना मन, वचन और तन तीनों से करनी चाहिए, तभी उसका जीवन सुखद, शान्त और मधुर बन सकता है । ब्रह्मचर्य की साधना से जैसे-जैसे वीर्यशक्ति बढ़ती है, वैसे-वैसे उसमें इच्छा-शक्ति, और संकल्प-शक्ति भी बढ़ती जाती है। इच्छा-शक्ति और संकल्प-शक्ति से ब्रह्मचर्य की साधना असम्भव होने पर भी सम्भव बन जाती है और कठिन होने पर भी सरल हो जाती है। क्योंकि मन इच्छा-शक्ति
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