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ब्रह्मचर्य दर्शन
को जीतने में समर्थ हो जाता है । इसी को योग शास्त्र में ध्यान योग एवं ध्यान-साधना कहा है।
संकल्प शक्ति :
·
कि 'मानसं विद्धि
मनुष्य क्या है ? यह आज का नहीं, एक चिरन्तन प्रश्न रहा है । मनुष्य के जीवन का निर्माण और विकास जिस शक्ति पर निर्भर है, आज के मनोविज्ञान के पण्डित उसे मनोबल, संकल्प और इच्छा-शक्ति कहते हैं । महाकवि रवीन्द्रनाथ ने कहा है, कि - "जब मनुष्य अपने आपको अज्ञानवश तुच्छ, नगण्य, दीन एवं हीन समझ लेता है, तब उसके जीवन का भयंकर पतन हो जाता है ।" यह पतन क्यों होता है ? इसके समाधान में कहा गया है, कि संकल्प की हीनता और मन की दीनता से मनुष्य अपनी शक्ति पर योग्यता पर और क्षमता पर विश्वास खो बैठता है । संकल्प-शक्ति के अभाव में व्यक्ति किसी भी महान कार्य को सम्पन्न नहीं कर सकता । ब्रह्मचर्य की साधना में सफल होने के लिए, इस संकल्प शक्ति की नितान्त आवश्यकता है । क्योंकि मनुष्य जैसा विचारता है वैसा ही बोलता है; और जैसा बोलता है वैसा ही आचरण भी करता है । मैं क्या हूँ ? इस प्रश्न का समाधान खोजने के लिए साधक को अपने अन्दर ही चिन्तन और मनन करना होगा। बाहर से कभी इस प्रश्न का समाधान होने वाला नहीं है । महर्षि वशिष्ठ ने 'योग वाशिष्ठ' में कहा हैं, मानवम् ।' महर्षि वशिष्ठ से एक बार पूछा गया था कि मनुष्य क्या है ? उसका क्या स्वरूप ? इस प्रश्न के समाधान में उन्होंने कहा था कि मनुष्य अपने विचार और संकल्प का प्रतिफल है । वह जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है, क्योंकि मनुष्य मनोमय होता है । जो कुछ वर्तमान में है, वह उससे भिन्न नहीं है, जो उसने अतीतकाल में अपने जीवन के सम्बन्ध में कुछ चिन्तन और मनन किया था । मनुष्य भविष्य में भी वही कुछ बनेगा, जो कुछ या जैसा भी वह वर्तमान में अपने सम्बन्ध में सोच रहा है । अपने आपको मिट्टी का पुतला समझने वाला व्यक्ति संसार में क्या कर सकता है ? जो व्यक्ति अपने आप को अनन्त, असीम, अजस्र चैतन्य शक्ति का अधिष्ठान समझता है, वही संसार में कुछ कार्य कर सकता है । अपने प्रति हीन भावना और तुच्छ विचार रखने वाला व्यक्ति, दूसरों को तो क्या, स्वयं अपने को भी समझने की शक्ति खो बैठता है । जब तक मनुष्य अपने दिव्य रूप में विश्वास नहीं करेगा, अपने दिव्य रूप का परिज्ञान नहीं करेगा और अपने दिव्य रूप के अनुसार आचरण नहीं करेगा, तब तक संसार का कोई भी देव, महादेव और अधिदेव उसके जीवन का संरक्षण और सम्वर्धन नहीं कर सकता । विचार कीजिए, जिस बीज की अपनी जीवनशक्ति विलुप्त हो चुकी है, महामेघ की हजार-हजार धाराएँ, सूर्य का विश्व-संजीवक उष्ण प्रकाश और प्राण प्राण में शक्ति संचार करने वाला पवन
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