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ब्रह्मचर्य-दर्शन
महाव्रत । अहिंसा का अर्थ है--किसी को किसी प्रकार की पीडा न देना। सत्यका अर्थ है, यथार्थ भाषण करना । अस्तेय का अर्थ है, किसी की वस्तु उसकी बिना आज्ञा के ग्रहण न करना । ब्रह्मचर्य का अर्थ है, अपनी वासना पर संयम रखना । अपरिग्रह का अर्थ है, किसी भी वस्तु पर आसक्ति भाव न रखना। इसके अतिरिक्त अपने मन को, वाणी को और शरीर को किसी भी पाप-वृत्ति में संलग्न न करना । बोलते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि मैं क्या बोल रहा हूँ और किससे क्या कह रहा हूँ ? किसी प्रकार का अनुचित शब्द तो मेरे मुख से नहीं निकल रहा है ? मार्ग में चलते हुए यह ध्यान रखना कि मैं कहाँ चल रहा हूँ और जिस पथ पर मैं चल रहा हूँ, वह कैसा है। किसी से कोई वस्तु लेते समय भी विवेक रक्खो और किसी को कोई वस्तु देते समय भी विवेक रखना आवश्यक है। किसी भी वस्तु को ग्रहण करने से पूर्व उसके अच्छे एवं बुरे परिणाम पर भी विचार करना चाहिए । किसी वस्तु का परित्याग करते समय, साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि मैं किस वस्तु को कहाँ डाल रहा हूँ।
भगवान महावीर ने अपने आचार-शास्त्र में साधक के लिए यह उपदेश दिया है कि वह प्रतिदिन चार भावनाओं पर विचार करे--मैत्री-भावना, प्रमोद-भावना करुण-भावना और मध्यस्थभावना । मैत्री भावना का अर्थ है-संसार के प्रत्येक प्राणी को, प्रत्येक चेतन आत्मा को हम अपना मित्र समझे। उसके प्रति शत्रुता की भावना न रखें । प्रमोद भावना का अर्थ है-संसार में जो स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न आत्माएँ हैं, उनकी प्रसन्नता और सम्पन्नता को देखकर, हमारे मन में प्रमोद हो, हर्ष हो, किन्तु ईर्ष्या और असूया न हो। करुण-भावना का अर्थ है-संसार में जो दीन-हीन एवं दुःखी प्राणी हैं, उनके प्रति हमारे हृदय में करुणा, दया और अनुकम्पा रहे । मध्यस्थ भावना का अर्थ है-संसार में जो विरोधी हैं, उनके प्रति भी हमारे हृदय में कभी विरोध की भावना उत्पन्न न हो। संक्षेप में भगवान महावीर का आचार-शास्त्र और नीति-शास्त्र यही है । बुद्ध का प्राचार-शास्त्र :
भगवान बुद्ध ने अपने आचार-शास्त्र में उन सभी बातों को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है, जिन्हें भगवान महावीर ने मान्यता दी है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों को पंचशील का उपदेश दिया है और कहा है कि इस पंचशील के पालन से मानव के जीवन का विकास होगा। उन्होंने कहा है कि जगत के समस्त प्राणी प्रसन्न हों एवं सुखी हों। कोई किसी से वैर न रखे, कोई किसी से घृणा न करें। क्रोध को शान्ति से जीतने का प्रयत्न करो। किसी को अश्लील शब्द मत कहो ।
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