________________
सिद्धान्त खण्ड
आध्यात्मिक ब्रह्मचर्य :
भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य की साधना को अन्य सभी साधनाओं की अपेक्षा बड़ा ही महत्व दिया गया है । वेद और उपनिषदों में ब्रह्मचर्य की महिमा का गायन प्रभावशाली शब्दों में किया है । जैन आगमों में ब्रह्मचर्य का गम्भीर विवेचन उपलब्ध होता है। बौद्ध त्रिपिटकों में भी ब्रह्मचर्य के विषय में विस्तार के साथ प्रकाश डाला गया है। भारत की इन तीनों प्राचीन संस्कृतियों में जो कुछ, जैसा और जितना भी वर्णन आज उपलब्ध है, वह किसी भी साधक की साधना के पथ पर प्रकाश डालने में पर्याप्त है । ब्रह्मचर्य व्रत के अगणित साधकों ने उक्त ग्रन्थ से विचारों का प्रकाश लेकर अपने गन्तव्य पथ को आलोकित किया है, तथा अपनी साधना में सफलता भी अधिगत की है। भारतीय संस्कृति और धर्म के इतिहास में, ब्रह्मचर्य से बढ़कर अन्य किसी व्रत को महत्व नहीं मिला है। तपोमय जीवन के धनी उग्र तपस्वियों का घोर तप एक ओर तथा दूसरी ओर विशुद्ध भाव से किया गया ब्रह्मचर्य व्रत का परिपालन । इन दोनों की तुलना करते हुए भारत के ऋषि, मुनि और तत्व-वेत्ताओं ने यह निर्णय दिया है कि निश्चय ही समस्त व्रतों में एवं समस्त तपों में, सर्वश्रेष्ठ व्रत एवं तप ब्रह्मचर्य ही है। प्रश्न किया जा सकता है कि अन्य अध्यात्म साधना की अपेक्षा ब्रह्मचर्य की साधना को इतना
अधिक महत्व क्यों मिला ? एक योगी, एक तपस्वी, एवं एक ध्यानी साधक की अपेक्षा ब्रह्मचर्य-साधक के जीवन की गरिमा एवं महिमा का इतना अधिक वर्णन क्यों किया गया है ? क्या अन्य साधनाओं का मूल्य, ब्रह्मचर्य की साधना की तुलना में हीन कोटि का है ? युग-द्रष्टा ऋषियों ने अपने-अपने युग में, इन प्रश्नों का समाधान करने का प्रयत्न किया है । उस समाधान का सारतत्त्व और निष्कर्ष इतना ही है कि ब्रह्मचर्य की साधना, वासना-जय की साधना है । मन की वासना को जीतना, उतना सहज और आसान नहीं है, जितना उसे समझ लिया जाता है। मनुष्य किसी भी एकान्त, शान्त स्थान में बैठकर घोर से घोर तप की साधना कर सकता है, अन्य किसी भी व्रत की आराधना कर सकता है, परन्तु जिस समय मनुष्य के चित्त में वासना की उमियाँ उद्वेलित होती हैं, उस समय वह अपने आप को सँभाल नहीं सकता। महा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org