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दर्शन-शास्त्र : ब्रह्मचर्य
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एवं विनाशक है । मैथुन से कम्प, स्वेद, श्रम, मूर्छा, मोह, चक्कर, ग्लानि, शक्ति का क्षय और राजयक्ष्मा आदि भयंकर रोगों की उत्पत्ति हो जाती है । मैथुन में हिंसा भी होती है। कहा गया है कि मैथुन का सेवन करते समय योनि-रूपी यन्त्र में उत्पन्न होने वाले अत्यन्त सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है। काम-शास्त्र के प्रणेता आचार्य वात्स्यायन ने भी स्त्री-योनि में सूक्ष्म जन्तुओं का अस्तित्व स्वीकार किया है । इस दृष्टि से अध्यात्म साधक के लिए मैथुन सेवन एक भयंकर पाप है। जो लोग यह समझते हैं कि भोग में शान्ति है, संसार में उनसे बढ़कर अज्ञानी अन्य कोई नहीं हो सकता । जो . व्यक्ति विषय-वासना का सेवन करके कामज्वर का प्रतिकार करना चाहता है, वह अग्नि में घृत की आहुति डालकर उसे बुझाना चाहता है । जैसे घी से आग बुझती नहीं, वैसे ही काम से वासना कभी शान्त नहीं होती है । अध्यात्म शास्त्र में मैथुन सेवन के दोष बताते हुए कहा गया है कि विषय-वासना नरक का द्वार है इससे बुद्धि का विनाश होता है और आत्मा के सद्गुणों का घात । ब्रह्मचर्य का फल
ब्रह्मचर्य संयम का मूल है। परब्रह्म मोक्ष का एक मात्र कारण है । ब्रह्मचर्य पालन करने वाला पूज्यों का भी पूज्य है । सुर, असुर एवं नर सभी का वह पूज्य होता है, जो विशुद्ध मन से ब्रह्मचर्य की साधना करता है। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मनुष्य स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहता है। ब्रह्मचर्य की साधना से मनुष्य का जीवन तेजस्वी और ओजस्वी बन जाता है।
जो व्यक्ति विषय-सेवन से काम के ताप को शान्त करना चाहता है, वह जलती ज्वाला में घी की आहुति डाल कर, उसे बुझाना चाहता है।
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