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नीति-शास्त्र : ब्रह्मचर्य
अपने शत्र ु से भी मित्र जैसा व्यवहार करो। हमेशा ध्यान रखो कि, दूसरे को किसी भी प्रकार का कष्ट मत दो। जो व्यक्ति अपनी वासना को जीत नहीं सकता, वह अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता । बुद्ध ने अपने आचार-शास्त्र में मुख्य रूप से चार आर्य सत्यों का कथन किया है। वे चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं-जगत में दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख को दूर किया जा सकता है, दुःख के निवारण का उपाय है । इन आर्य सत्यों में यह बतलाने का प्रयत्न किया गया है कि यह संसार दुःखमय है, किन्तु इन दुःखों से साधना के द्वारा मनुष्य विमुक्त हो सकता है । इसके अतिरिक्त भगवान बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग का उपदेश भी दिया है । वस्तुतः बुद्ध के आचार - शास्त्र का यह एक मुख्य आधार है । यह अष्टांगिक मार्ग इस प्रकार हैसम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, प्राणि-हिंसा से विरत होना, सम्यक् आजीव, सभ्यग् व्यायाय - जागरूकता, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि । बुद्ध का आचार - शास्त्र जीवन की आन्तरिक विशुद्धि पर बल देता है । उन्होंने कहा है कि मन को अशुभ संकल्पोंसे बचाना चाहिए और उसमें सदा शुभ संकल्प ही रहने चाहिए । बुद्ध के जीवन में करुणा एवं वैराग्य विशेष रूप से परिलक्षित होते हैं । बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर यह बतलाया कि मानव जीवन की सार्थकता और सफलता इस बात में है कि वह शीघ्र से शीघ्र वासना के बन्धन से और भोग-विलास की लोलुपता से अपने आपको मुक्त करले ।
वासना उस किपाक विष फल के समान है, जो खाने में मधुर होता है, सूंघने में सुरभित होता है, किन्तु जिस का परिणाम हैं - मृत्यु |
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