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ब्रह्मचर्य की परिधि
१३९.
नेत्र-संयम का अर्थ है, नेत्र से सुन्दर और आकर्षक वस्तु देखकर भी, उस वस्तु में आसक्ति और लालसा उत्पन्न न होने देना। यदि इतना सामर्थ्य न हो तो, विकारोतेजक वस्तु के रूप-दर्शन से आँखों को बचाए रखने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
मनुष्य के पास दूसरों की बात को सुनने के लिए श्रोत्र है। श्रोत्र इन्द्रिय का विषय है शब्द । शब्द प्रिय भी होता है और अप्रिय भी होता है। अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है, प्रिय शब्द को सुनकर मनुष्य के मन में राग उत्पन्न हो जाता है और अप्रिय शब्द को सुनकर द्वष उत्पन्न होता है । कामोत्तेजक अभद्र शब्द मनुष्य के मन में प्रसुप्त वासना को जागृत कर देता है । अतः ब्रह्मचर्य के साधक के लिए श्रोत्र-संयम नितान्त आवश्यक है । नृत्य देखने के साथ-साथ अभद्र संगीत सुनने का निषेध भी शास्त्रकारों ने किया है । ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले साधक को अश्लील गाने एवं बजाने आदि का अधिकार नहीं है। क्योंकि गंदे गायन और वाद्य वासना उभारते हैं । एक मनोवैज्ञानिक ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि-"इसमें कोई सन्देह नहीं कि, भिन्न-भिन्न प्राणियों में, विशेष रूप से कीट-पतंगों और पक्षियों में संगीत का उद्देश्य नर और मादा को परस्पर एक दूसरे के प्रति लुभाना ही होता है।" डार्विन महोदय ने भी इस विषय में बहुत अनुसंधान किए हैं और वे भी अन्ततः उक्त निर्णय पर ही पहुंचे हैं । वर्तमान काल की गवेषणाओं से भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मधुर शब्दों तथा गीतों का परिणाम पक्षियों में नर और मादा का मिलन ही होता है । गीत तथा प्रेम के सम्बन्ध को सिद्ध करने के लिए, इतना कहना हो पर्याप्त है कि प्राणि-जगत में नर तथा मादा में से एक को हो प्रकृति की ओर से मधुर स्वर दिया गया है, दोनों को नहीं । संगीत एवं मधुर शब्द सुनने की प्रवृत्ति जिस प्रकार पक्षियों में है, उसी प्रकार पशुओं में भी कम नहीं है । इस सम्बन्ध में डाक्टर एलिस ने कहा है कि -"जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि पशुपक्षियों में ही नहीं, अपितु छोटे-से-छोटे जन्तु में भी, प्रसुप्त वासना रही हुई है। उसकी अभिव्यक्ति चेतना के विकास के साथ तथा प्राणी के अंग और इन्द्रियों के विकास के साथ अभिवृद्धि होती रहती है।” अस्तु, जो संगीत क्ष द्र जन्तु, पशु
और पक्षियों पर वासनानुकूल प्रभाव डाल सकता है, वह मनुष्य पर क्यों नहीं डाल सकता ? प्लेटो ने अपने 'काल्पनिक राज्य' नामक पुस्तक में लिखा है कि- "पुरुषों को ही नहीं, स्त्रियों को भी संगीत नहीं सिखाना चाहिए।" प्लेटो दो ही प्रकार के संगीत सिखाने के हक में हैं--एक युद्ध का और दूसरा प्रभु की प्रार्थना का। जब हम पशु, पक्षी और मनुष्य सभी में संगीत का सम्बन्ध, विषय-वासना को जागृत करने के साथ देखते हैं, तब प्राचीन ऋषियों का ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले साधक के जीवन के सम्बन्ध में यह कहना कि उसे नृत्य और संगीत देखना और सुनना नहीं
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