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ब्रह्मचर्य की परिधि
एवं उस जनशील बना देता है । उस स्थिति में ब्रह्मचर्य का पालन कठिनतर हो जाता है। शराब, चाय, काफी और तम्बाकू भी शरीर में विकार उत्पन्न करतें हैं । इनके सेवन से ब्रह्मचर्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अधिक भोजन करने से भी ब्रह्मचर्य में अनेक विकार पैदा हो जाते हैं । दुराचारी व्यक्ति का अपनी रसना इन्द्रिय पर बस न रहने के कारण ही वह अधिक और विकृत भोजन करता है । भारतीय आयुर्वेद-शास्त्र में बताया गया है कि जो व्यक्ति हित-भुक् एवं मित-भुक् होता है, वह कभी रोग ग्रस्त नहीं होता । डाक्टर कैलॉग ने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है कि- " अधिक खाने से वीर्य - नाश होना निश्चित है और उसी प्रकार विकृत भोजन से भी वीर्य में विकार उत्पन्न होते हैं ।" ब्रह्मचर्य के प्राचीन नियमों में इस सिद्धान्त को है कि- "अन्नमयं ही मनः" अर्थात् मनुष्य का मन अन्नमय है । वह जैसा अन्न खाता है उसका मन भी, वैसा ही अच्छा या बुरा बनता है । खट्टे मीठे, तीखे, नमकीन, और चरपरे पदार्थ मनुष्य के मन को विकृत करने वाले होते हैं । अतः ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले साधक को इन सबका सेवन नहीं करना चाहिए । यही रसना - संयम है ।
मुख्यता दी गई
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स्पर्शन इन्द्रिय का विषय स्पर्श है । स्पर्श कोमल, कठोर, रुक्ष, स्निग्ध, शीत, उष्ण, लघु और गुरु भेद से आठ प्रकार का माना गया है। भारत के प्राचीन धर्म शास्त्रों में स्पर्शन इन्द्रिय के विषय में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने शिष्यों को यह शिक्षा दी थी कि कोमल एवं मृदु वस्तुओं का परित्याग करदो । क्योंकि स्पर्शन इन्द्रिय के उत्तेजित होने से ब्रह्मचर्यं पर आघात पहुँचता हैं | डा० बेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में Emotions & Will में लिखा है कि"स्पर्श प्रेम एवं स्नेह का आदि और अन्त है ।" स्पर्श प्रसुप्त मनोभावों को जागृत करने का सबसे बड़ा कारण है । स्पर्श का मनुष्य को उत्तेजित करने में इतना भारी प्रभाव है कि अनेक पश्चिमी लेखकों की सम्मति में, वर्तमान युग मनुष्य, स्पर्शन इन्द्रिय की चमक-दमक में अपने आप को भूल बैठा है। डा० ब्लॉच अपने एक ग्रन्थ में लिखते हैं कि - " स्पर्श से मानसिक विकार उत्पन्न हो जाने का मुख्य कारण यह है कि त्वचा के ज्ञान तन्तुओं की रचना तथा शरीर के प्रजनन अंगों के तन्तुओं की रचना' एक ही पदार्थ से हुई है । इसलिए प्राणीमात्र के अन्य समस्त अवयवों की अपेक्षा त्वचा का प्रभाव, मानसिक दुर्भावों को जागृत करने में अधिक सफल होता है । जो व्यक्ति स्पर्श की आंधी से बच जाता है, वह उसके उन दुष्परिणामों से भी बच जाता है, जो उसे अन्धा बना देने वाले होते हैं ।" भारत के प्राचीन ऋषि और मुनियों ने भी यह बताया है कि ब्रह्मचर्यं की साधना करने वाले साधक को, कोमल शय्या पर नहीं सोना चाहिए एवं अपने से भिन्न किसी भी व्यक्ति के शरीर का स्पर्श नहीं करना चाहिए | क्योंकि इससे उसके ब्रह्मचर्य की साधना पर बुरा प्रभाव पड़ता
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