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ब्रह्मचर्य-दर्शन
मनुष्य के स्वभाव को सुधारने की ओर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक समाज में शान्ति और व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकेगी। एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र के साथ जो संघर्ष है, एक समाज का दूसरे समाज के साथ जो कलह है और एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ जो झगड़ा है, उसका मूल कारण व्यक्ति की मानसिक ग्रन्थियाँ ही हैं । यह मनुष्य की मानसिक ग्रन्थियाँ एक ओर उसे अपने आपको समझने में बाधा डालती हैं तथा दूसरी ओर उसका दूसरे लोगों से वैमनस्य बढ़ाती हैं। इसी के कारण राष्ट्र, समाज और व्यक्तियों में परस्पर संघर्ष उत्पन्न होते हैं ।
इस वर्तमान युग में मनुष्य के लिए जितने भी अध्ययन के विषय हैं, उन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी, मनोविज्ञान का अध्ययन ही है। क्योंकि मनोविज्ञान के अध्ययन से मनुष्य स्वयं अपने स्वरूप को और समाज के स्वरूप को भी भलीभाँति जान सकता है । जब तक मनुष्य अपने आपको, अपने पड़ोसियों को और अपने समाज को नहीं समझ सकेगा, तब तक उसे सुख, शान्ति एवं सन्तोष नहीं मिलेगा । धर्म, दर्शन, संस्कृति, साहित्य, शिक्षा, राजनीति और समाज इन सभी को समझने के लिए, और इन सबकी उपयोगिता जानने के लिए मनोविज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है । मनोविज्ञान एक ऐसा विषय है, जो विज्ञान और दर्शन में सामंजस्य स्थापित करने की चेष्टा करता है और जिसके अध्ययन एवं परिशीलन से मानवमन की गहनतर एवं गूढ़तर अनुभूति, विचार और मानसिक क्रियाओं को वैज्ञानिक पद्धति से समझा जा सकता है । मन के मेद :
मनोविज्ञान के अनुसार मन के तोन भेद किए जाते हैं-चेतन मन (Conscious), अचेतनमन (Unconscious) और चेतनोन्मुख मन (Preconscious)। डा० फ्रायड के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य का मन समुद्र में तैरते हुए, बर्फ के पहाड़ के समान है। इस पहाड़ का अष्टांश ही पानी की सतह के ऊपर रहता है, किन्तु उसका अधिकांश भाग पानी के भीतर रहता है । पानी के बाहर वाले भाग को ही हम देख सकते हैं, क्योंकि पानी के अन्दर रहने वाला भाग अदृश्य रहता है। डा० फ्रायड कहता है कि मन के. जिस भाग को हम जान सकते हैं वह चेतनमन कहलाता है और जिस हिस्से के विषय में हम कुछ भी नहीं जानते वह अचेतन मन कहलाता है । चेतन और अचेतन मन के बीच, मन का जो भाग है, वह चेतनोन्मुख मन कहा जाता है। मानव-जीवन के समस्त व्यवहार एवं क्रियाएँ चेतन मन से ही की जाती हैं। पढ़ना, लिखना, बोलना, चलना-फिरना, खाना, पीना, चिन्तन करना और कल्पना करना—यह सब चेतन मन के व्यापार हैं । एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ जो भी और जितना भी व्यवहार करता है, वह सब चेतन मन के द्वारा ही होता है । प्रत्येक
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