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ब्रह्मचर्य-दर्शन
चाहिए, तो उचित ही प्रतीत होता है । शब्द का प्रभाव सामान्य मनुष्य के मन पर ही नहीं, बड़े-बड़े साधकों के मन पर भी अनुकूल और प्रतिकूल पड़ सकता है । अतः ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले के लिए श्रोत्र-संयम आवश्यक ही नहीं, नितान्त आवश्यक है।
घ्राण का विषय है गन्ध । गन्ध दोनों प्रकार का हो सकता है-पुरभित और असुरभित । दोनों प्रकार के गन्ध-विषय से बचने के लिए साधक को सजग रहना चाहिए । नासिका तथा जनन-शक्ति में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध माना गया है। प्राचीन काल में रोम के लोगों को भी इस सम्बन्ध का विशेष परिज्ञान था। शरीरशास्त्रियों की दृष्टि में यौवन-काल में तरुण और तरुणियों को अधिक नक्सीर फूटने का कारण नासिका तथा जननेन्द्रिय का सम्बन्ध हो है। अनेक प्रयोग इस प्रकार के किए गए हैं कि जिनमें नसीर को, उस व्यक्ति के जनन-प्रदेश पर बर्फ रखकर बन्द किया गया है। कमजोर स्त्री और पुरुषों में सम्भोग-क्रिया को समाप्ति के बाद नक्सोर फूटती देखी गई है। अनेक बार वीर्षक्षय' के पीछे नासिका-रन्ध्र के द्वार का अवरोध और छींक आदि का आना भी देखा गया है। डा० एलिस महोदय ने एक स्त्री का उल्लेख करते हुए कहा है कि-"एक स्त्री को विवाह के बाद नक्सीर के बीमारी रहने लगी थी, और एक पुरुष को विवाह के बाद निरन्तर जुकाम रहने को बीमारी रहने लगी थी। अनुसन्धान करने पर ज्ञात हुआ कि अति सम्भोग ही इसका मुख्य कारण था।" इस प्रकार हम देखते हैं कि गन्ध का प्रभाव मनुष्य के मन पर किस गहराई के साथ पड़ता है। यही कारण है कि भारत के प्राचीन धर्म-शास्त्रों में रूप और शब्द के समान, गन्ध को भी ब्रह्मचर्य का विघातक माना गया है। ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले साधक के लिए, फूल सूंघने का, पुष्प-माला पहनने का, शरीर पर कस्तूरी एवं चन्दन आदि के सुगन्धित द्रव्यों के लेप का स्पष्ट निषेध किया गया है।
रसना इन्द्रिय का विषय है रस । रस-लोलुप व्यक्ति कभी भी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता । मनुष्य की रस-लोलुपता के कारण ही उसके मन में विविध प्रकार के विकल्प एवं विकार पैदा होते हैं । शरीर में अनेक प्रकार के रोग भी इस रस-लोलुपता के कारण ही उत्पन्न होते हैं । ब्रह्मचर्य के परिपालन के लिए रस-संयम और भोजन-संयम परमावश्यक है । जहाँ रस होता है वहाँ, रूप, गन्ध और स्पर्श को भी उत्तेजन मिलता है । यही कारण है कि भारतीय धर्म-शास्त्रों में ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले साधक के लिए सरस पदार्थों के सेवन का कठोरता के साथ निषेध किया गया है । इसके अतिरिक्त खटाई, मिठाई और मिर्च भी ब्रह्मचर्य के लिए घातक पदार्थ हैं । इनसे शरीर में एक ऐसा तत्व पैदा होता है, जो सम्पूर्ण शरीर को विषाक्त
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