________________
ब्रह्मचर्य वर्णन विकास के प्रथम श्वास के साथ ही जिसने सदाचार और सन्मति का शिक्षण लिया है, जो देश आज भी धर्म-प्रधान देश कहलाता है और जिसे विश्व का गुरू होने का गौरव प्राप्त है, वही देश आज इस हीन स्थिति पर पहुंच गया है, कि यहाँ अनाचार की और वासनाओं की खुलेआम शिक्षा दी जाती है। परिताप की बात है, कि हमारी अपनी ही सरकार ने इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है और न प्रजा की ओर से ही इस के विरोध में आवाज बुलन्द की जा रही है।
मैं समझता हूँ, अब तक के सिने चित्रों ने भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का जितना प्रयत्न किया है, उतना किसी और ने नहीं किया। इन चित्रों ने युवकों और युवतियों के हृदय में जहर के जो इंजेक्शन दिए हैं, उनसे उनका जीवन जहरीला बन गया है और बनता जा रहा है । आज समाज पर उनका बड़ा ही कुप्रभाव पड़ रहा है। आज के सिनेमा भारत की लाखों वर्षों की संयम-प्रधान संस्कृति के लिए एक चुनौती हैं।
इस देश के मनीषी महात्माओं ने विश्व में ब्रह्मचर्य का पावन सौरभ फैलाया था और बतलाया था, कि ब्रह्मचर्य की प्रचण्ड शक्ति के प्रताप से ही भारतीय साधकों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है। किन्तु आज यह देश सभी कुछ भूल रहा है । आज हम अपने जीवन को शास्त्रों से मिला कर देखें, तो पता चलेगा कि शास्त्र क्या कहते हैं, और हम अपना जीवन किस प्रकार गुज़ार रहे हैं। जब तक हम अपना जीवन शास्त्रों के अनुसार नहीं बनाएंगे, तब तक हमारा जीवन धर्ममय नहीं बन सकता, तेजोमय नहीं बन सकता और विशाल नहीं बन सकता। यदि हम अपने जीवन को अरिष्टनेमि और महावीर, राम और हनुमान, भीष्म और बुद्ध के जीवन के ढाँचे में नहीं डालेंगे, तो देश और समाज का कल्याण होना कोरा स्वप्न ही रह जाएगा।
, असली जीवन-तत्त्व ब्रह्मचर्य की साधना में ही है और ब्रह्मचर्य की साधना का अर्थ है-'बृहत् आदर्श ।' सामाजिक दृष्टि से और राष्ट्रीय दृष्टि से भी हमारे जीवन में बृहत् आदर्श और बृहत् कल्पना आनी चाहिए, क्योंकि उसके आने पर ही ब्रह्मचर्य की प्राण-प्रदायिनी साधना सजीव हो सकती है । व्यावर १२-११-५० ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org