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ब्रह्मचर्य दर्शन देव-बाणव-गंधव्या, जक्स-रक्खस-किन्नरा। गंभयारि नमसंति, दुकरं जे करेन्ति तं ॥
-उत्तराध्ययन सूत्र १६ -जो महान् प्रात्मा दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, समस्त दैवी शक्तियाँ उनके चरणों में सिर झुका कर खड़ी हो जाती हैं। देव, दानव, गंधवं, यक्ष, राक्षस और किन्नर ब्रह्मचारी के चरणों में सभक्तिभाव नमस्कार करते हैं।
परन्तु हमें यह जानना है, कि ब्रह्मचर्य कैसे प्राप्त किया जाता है और किस प्रकार उसकी रक्षा हो सकती है ?
___ इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए एक बात पहले समझ लेना चाहिए । वह यह है, कि ब्रह्मचर्य का भाव बाहर से नहीं लाया जाता है। यह तो अन्दर में ही है, किन्तु विकारों ने उसे दवा रक्खा है।
जैनधर्म ने यही कहा है कि चैतन्य जगत् में ऐसी कोई भी नयी चीज़ नहीं है, जो इसमें मूलतः न हो । केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन की जो महान् ज्योति मिलती है, उसके विषय में कहने को तो कहते हैं, कि वह अमुक दिन और अमुक समय मिल गई, किन्तु वास्तव में कोई नवीन चीज़ नहीं मिलती है । हम केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन और दूसरी आध्यात्मिक शक्तियों के लिए आविर्भाव शब्द का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः केवल-ज्ञान आदि शक्तियां उत्पन्न नहीं होती हैं, आविर्भूत होती हैं। उत्पन्न होने का अर्थ नयी चीज का बनना है और आविर्भाव का अर्थ है-विद्यमान वस्तु का, आवरण हटने पर प्रकट हो जाना। - जैनधर्म प्रत्येक शक्ति की उत्पत्ति के लिए प्रादुर्भाव एवं आविर्भाव शब्द का प्रयोग करता है, क्योंकि किसी वस्तु में कोई भी अभूतपूर्व शक्ति उत्पन्न नहीं होती है। सदा सदरूप शक्ति को अभिव्यक्ति होती है, उत्पत्ति नहीं ।
मात्मा की जो शक्तियां हैं वे अन्तर में विद्यमान हैं, किन्तु वासनाओं के कारण दबी रहती हैं । हमारा काम उन वासनाओं को दूर करना है । इसी को साधना कहते हैं । जैसे किसी-धातुपात्र को जंग लग गई है, और जंगके कारण उसकी चमक कम हो गई है, तो चमक लाने के लिए मांजने वाला उसे घिसता है, जंगको दूर करता है। ऐसा करके वह कोई नयी चमक उसमें नहीं पैदा करता है । उस पात्र में जो चमक विद्यमान है, और जो जंग के कारण से दब गई या छिप गई है, उसे प्रकट कर देना से मांजने वाले का काम है। सोना, कीचड़ में गिर गया है और उसकी चमक छिप गई है। उसे साफ करने वाला सोने में कोई नयी चमक बाहर से नहीं डाल रहा है, सोने को सोना नहीं बना रहा है, सोना तो वह हर हालत में है ही । जब कीचड़ में नहीं पड़ा था, तब भी सोना था और जब कीचड़ से लथ-पथ हो गया, तब भी सोना ही
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