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ब्रह्मचर्य का प्रभाव हम अनुभव करते हैं, कि किसी भी भयंकर पदार्थ को देखने पर जिसमें भय की वृत्ति है, वही प्रभावित होता है, और जिसमें भय की भावना नहीं है, वह प्रभावित नहीं होता । बल्कि यों कहना चाहिए, कि भयंकर कहलाने वाला पदार्थ उसी के लिए भयंकर है, जिसके अन्तःस्तल में भय की भावना है । निर्भय के लिए भयंकर पदार्थ दुनिया में कोई है ही नहीं।
इसी प्रकार किसी व्यक्ति के अन्दर यदि द्वष है, तो वह बाहर में भी द्वेष से प्रभावित होगा । यदि द्वष नहीं है, तो नहीं होगा । भगवान् महावीर के समवसरण में दो-दो साधुओं की हत्या होती है, तेजोलेश्या का प्रयोग किया जाता है, और आग की ज्वालाएं चक्कर काटती हैं, एक तरह से समवसरण में हंगामा मच जाता है। यह सब होता है, किन्तु जब हम उस महान् पुरुष महावीर को देखते हैं, तो क्या देखते हैं, कि गोशाला के आने से पहले जो प्रशान्त-भाव उनके मुख चन्द्र से झलक रहा था, वही दो साधुओं के भस्म हो जाने पर भी झलकता रहता है। इस पर हम समझते हैं, कि जो बाहर से प्रभावित होने वाले थे, वे तो प्रभावित हो गए । किन्तु जिनके मन में राग द्वेष नहीं रहा था, जिनका मन स्वच्छ और निर्मल बन चुका था, उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । इसका अर्थ यह है कि यदि अन्दर में वृत्तियां होंगी, तो बाहर के जगत से प्रभावित हो जाएगा और यदि अन्दर में वृत्तियां नहीं हैं, तो वह बाहर से प्रभावित नहीं होगा।
साथ ही अन्दर के जगत् से बाह्य जगत् किस प्रकार प्रभावित होता है, यह बतलाने के लिए अभी मैंने सीता, सोमा, और द्रौपदी के जीवन की घटनाएं आपके सामने रक्खी हैं । थोड़ी देर के लिए हम इन घटनाओं की उपेक्षा भी कर दें, तो भी चेतना के बाह्य जगत् पर पड़ने वाले प्रभाव को साबित करने वाले तर्कों का टोटा नहीं है। हमारे यहाँ भय का भूत प्रसिद्ध है, और यह भी प्रसिद्ध है, कि वह कल्पना का भूत कभी-कभी मनुष्य के प्राणों तक का ग्राहक बन जाता है । वह क्या चीज है ? वास्तव में अन्दर की चेतना ही वहाँ बाह्य शरीर आदि को इस रूप में प्रभावित भौर उत्तेजित करती है, जिस से स्वयं उसका अपना ही जोवन आक्रान्त हो जाता है।
इस रूप में ब्रह्मचर्य की जो कहानियां हैं, उनके सामने हमारा सिर झुक जाता है, हम उनका अभिनन्दन करते हैं और वे सही हैं, और सही ही रहेंगी। वे कहानियाँ संसार के इतिहास में अजर और अमर रहेंगी; जन-समाज के जीवन को युग-युग तक महत्त्वपूर्ण प्रेरणा देती रहेंगी।
ब्रह्मचर्य की प्रशंसा कौन नहीं करता ? हमारे शास्त्र ब्रह्मचर्य की महिमा का गान करते हुए कहते हैं
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