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मात्म-शोधन
२७
किसान ने कहा- "तुम अपना काम करो और मुझे अपना काम करने दो।"
गौतम अवाक् थोड़ी देर खड़े रहे। बूढ़ा किसान जमीन जोत कर चलने लगा, तो गौतम भी नंगे पाँव उसके पीछे-पीछे जलती रेत में चलने लगे ।
गौतम विचार-मग्न थे । आखिर उन्होंने कहा-“अरे भाई, मेरी एक बात तो सुन लो।"
किसान बोला-"कहो, क्या बात है ?" गौतम-“घर में तुम कितने आदमी हो ?" किसान- "मैं अकेला राम हूँ, अन्य कोई नहीं है ।" गौतम-"और मकान ?"
किसान-"एक फूस का छप्पर है। जब वह खराब हो जाता है, तब जंगल से घास-पात ले जाकर फिर ठीक कर लेता हूँ।"
गौतम-"तुम इतने दिनों में भी सुखी नहीं हो सके, तो इस ढलती उम्र में ही क्या सुखी हो सकोगे ?"
किसान-"मेरे भाग्य में सुख है ही नहीं। बहुत-सी जिंदगी बीत गई । थोड़ी और बाकी है, उसे भी यों ही बिता दूंगा।"
___ गौतम-"क्या दो रोटियों के लिए अपनी शेष अनमोल जिन्दगी यूं ही समाप्त कर दोगे ? अगले जन्म के लिए भी कुछ करोगे या नहीं ? न करोगे, तो पीछे पछताओगे।"
गौतम जैसे महान् त्यागी का उपदेश कारगर हुआ । किसान के हृदय में गौतम के प्रति श्रद्धा जाग उठी । उत्कंठा के साथ उसने पूछा-"भगवन् ! क्या मेरे भाग्य में भी कहीं सुख लिखा है ? मैं तो अब बूढ़ा हो चुका हूँ। जिंदगी किनारे लग गई है। अब इस जन्म में मुझे तारने वाला कौन है ? आप ही कहिए, मुझे क्या करना चाहिए ?"
गौतम--"सुख की बात तो यह है, कि प्रत्येक आत्मा में अनन्त आनन्द का सागर हिलोरें ले रहा है। भाग्य में क्या लिखा है, इसकी क्या बात करते हो ? आत्मा के कण-कण में अक्षय आनन्द का निधि भरा पड़ा है। उसे समझने भर की देर है । अब रहो बात तारने की, तो जो मुझे तारने वाला है, वही तुम्हें भी तारने वाला है, और वही समग्र जगत् को तारने वाला है । मैंने जिन प्रभु का आश्रय लिया है, उन्हीं प्रभु के चरणों में चल कर तुम भी आत्म-समर्पण कर दो। भगवान् के सर्वोदय संघ में सबको समान स्थान प्राप्त है । वहाँ बालक और वृद्ध, राजा और रंक, ऊँचे और नीचे, सब एक-सा स्थान पाते हैं। भगवान् की गोद में सभी साधक आश्रय पा सकते हैं । वह गोद शान्ति की एक सुन्दर स्थली है। वहाँ जात-पात आदि की विभिन्न मर्यादाएं नहीं है, किसी किस्म की दीवारें नहीं हैं।"
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