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अन्तद्वन्द्व
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मगर गोशाला को भगवान् और ही रूप में नजर आए और उधर गौतम को कुछ और ही । हम समझते हैं, कि बाहर में जो गुत्थियाँ हैं, वे सब हमारे मन में रहती हैं । अतः जैसा हमारा मन होता है, वैसा ही संसार हमको नजर आने लगता है । पुराने दर्शनों की जो विभिन्न परम्पराएँ हैं, उनमें एक दृष्टि-सृष्टिवाद की भी परम्परा है । उसकी मूल विचारणा है—
यादृशी दृष्टिस्तादृशी सृष्टि : ।
जैसी दृष्टि होती है, जिस मनुष्य का जैसा दृष्टिकोण बन जाता है, उसके लिए वैसी ही सृष्टि हो जाती है ।
अभिप्राय यह है, कि कोई पूछे कि सृष्टि भली है या बुरी ? तो इसके लिए उसी से पूछ लो, कि तुम्हारी दृष्टि अच्छी है या बुरी ? अगर दृष्टि अच्छी है, तो सृष्टि भी अच्छी नजर आएगी और दृष्टि बुरी है, तो सृष्टि भी बुरी नजर आएगी । मनुष्य बाहर में जो संघर्ष कर रहा है, उसका मूल अन्दर में है । वह अन्तवृतियों के कारण ही बाहर में जूझ रहा है । इस सम्बन्ध में पुराने विचारकों ने एक सुन्दर रूपक की संयोजना की है ।
काँच के एक महल में जहाँ ऊपर, नीचे और इधर-उधर काँच ही काँच जड़ा था, एक कुत्ता पहुँच गया । वह अकेला ही था, उसका कोई संगी-साथी भी नहीं था । वहाँ उसे रोटी का एक टुकड़ा पड़ा मिला । ज्यों ही वह उसे लेने के लिए झपटा। क्या देखता है, कि सैकड़ों कुत्ते उस टुकड़े के लिए झपट रहे हैं। कुत्ता वहाँ अकेला ही था, परन्तु उसी के अपने सैकड़ों प्रतिबिम्ब सैकड़ों कुत्तों के रूप में उसे नजर आ रहे थे । वह उनसे संघर्ष करता है, लड़ता है । जब मुँह फाड़ता है और दाँत निकालता है, तो उसके प्रतिद्वन्द्वी सैकड़ों कुत्ते भी वैसा ही करते हैं। वह कांच की दीवारों से टकरा टकरा कर लोहूलुहान हो जाता है । टुकड़ा वहीं पड़ा है। उसे कोई उठाने वाला नहीं है, परन्तु उसकी मानसिक भूमिका में से सैकड़ों कुत्तं पैदा हो गए और उनसे लड़-लड़ कर उसने अपनी ही दुर्गंति कर डाली ।
हमारे विचारकों ने कहा है, ठीक यही स्थिति संसारासक्त मनुष्य की हो रही है । उसे जीवन के बाहर के जो शत्रु और मित्र दिखाई देते हैं, और उनसे वह संघर्ष करता हुआ नजर आता है, किन्तु वास्तव में वह संघर्ष बाहर का नहीं है, वह तो उसकी अन्दर की वृत्ति का है । किन्तु मनुष्य अपनी वृत्तियों को ठीक रूप से न समझने के कारण बाहर में संघर्ष करता दिखाई देता है, और अपनो स्वयं की दुर्गति कर लेता है । यदि संसार की समस्या को हल करना चाहते हो, तो पहले अपने अन्दर की समस्या को हल करो । यदि तुमने अन्दर के दृष्टिकोण को स्पष्ट समझ लिया है, तो जो तुम चाहोगे, वही हो जाएगा ।
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