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ब्रह्मचर्य दर्शन
बूढ़े किसान के मन में गौतम की बात बैठ गई । उसने उसी समय गौतम से दीक्षा ले ली । गणधर गौतम भगवान् की ओर चले और उनका नवदीक्षित शिष्य भी उनके पीछे-पीछे चला ।
गौतम ने जाते ही प्रभु को वन्दन किया । किसान ने, जो साधु बन चुका था, भगवान् को देखा उनकी परिषदा देखी, स्त्री और पुरुषों की एक बड़ी भीड़ देखी, तो वह भड़क गया । कहने लगा- "यह तो ढोंग है । मैं समझता था, कि यह निःस्पृह और त्यागी होंगे। मगर यहाँ का तो रंग-ढंग ही निराला है ।"
यह कह कर उस बूढ़े किसान ने फिर वही अपना पहले का पथ अपना लिया और चल दिया ।
सभी लोग उसकी यह चर्या देखकर चकित रह गए। गौतम ने प्रभु से पूछा"भगवन् ! यह क्या बात है ? मेरे साथ आया, तब तक तो उसके मन कोई बात नहीं थी । वह मुझे श्रद्धा की दृष्टि से देखने लगा था । परन्तु अब उसके हृदय में सहसा यह हलचल क्यों उत्पन्न हुई ? आपको देखते ही क्यों भाग खड़ा हुआ ?"
भगवान ने कहा - "आयुष्मान् ! इस घटना के पीछे एक लम्बा इतिहास है । सुनो, जब मैं त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में था, तब यह किसान सिंह के रूप में था । मैं सिंह को मारने जा रहा था, तब तुम मेरे सारथी थे। मैंने सिंह का बध किया, अतः वह जब मरा तो मेरे प्रति घृणा का भाव लेकर मरा। मगर तुम्हारे प्रति उसके हृदय में प्रेम के अंकुर पैदा हो गए थे। तुमने उस मरण की घड़ी में उसे मीठे वचनों से - "हे सिंह ! तुम मृगराज हो, और यह नर राज है । पछतावा मत करो। तुम किसी साधारण आदमी के हाथ से तो नहीं मारे गए हो । राजा राजा से मरा है । "
समझाया था --
जन्म-मरण की एक लम्बी परम्परा के बाद अब मैं महावीर के रूप में हूँ, तुम मेरे शिष्य गौतम के रूप में हो और वह तीसरा साथी सिंह, किसान के रूप में जन्मा है । तुम्हारी वाणी का इसी कारण उस पर प्रभाव हो गया, कि तुमने उसे उस जन्म में भी प्रतिबोध दिया था। उसी प्रेम के कारण किसान मिलते ही तुम्हारे साथ हो गया । मगर मेरे साथ उसका पिछले जन्म का वैर भाव था, वह मुझसे नहीं समझ सकता था । देखते हो, मुझे देखते ही उसके हृदय में दबे हुए घृणा के संस्कार जाग उठे और वह संयम का पथ छोड़कर भाग गया ।"
भगवान् ने फिर कहा - "अभी बेचारा कर्मों के चक्कर में फँसा । अभी उसे बहुत कर्म भोगने हैं । उसका कोई दोष नहीं है । वह तो कर्मों का नचाया नाच रहा है । उस पर हमें किसी प्रकार का द्वेष नहीं करना है, घृणा नहीं करनी है । गौतम, खिन्न होने की कोई बात नहीं है, हमारा कार्य पूरा हो चुका है । तुम्हारे द्वारा उसके अन्तर में सत्य- दृष्टि का, सम्यग्दर्शन का जो बीजारोपण हुआ है; वह एक दिन अवश्य अंकुरित होगा और उसकी मुक्ति का कारण बनेगा ।"
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