Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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दृष्ट व्यक्ति, लोक तथा सम्बन्ध
जावयवों से स्थूल या सूक्ष्म जड वस्तुओं का निर्माण होता है, वह अपने अवयवों के संघात से अतिरिक्त कुछ नहीं है । अवयवों से अतिरिक्त जैसे अवयवी नहीं, उसी प्रकार चेतना समूहों से अतिरिक्त कोई अन्य चेतन या जड आश्रय नहीं है । यह नहीं है कि व्यक्ति या वस्तु की अपनी कोई असाधारणता नहीं है, प्रत्युत असाधारणता का आधार (घट आदि वस्तुओं के अवयवों का एक विशेष सम्पुञ्जन मात्र है । किसी भी स्थिति व्यक्ति का कोई भी अंश अनिर्मित, असंस्कार्य एवं अविकार्य नहीं है । जड-चेतन हेतुओं से निर्मित व्यक्ति एक राशि है । उसके व्यक्तित्व के निर्माण में अनित्य चेतना - समूहों का प्रमुख हाथ है । उसके आधार पर जैसे वह अपना जीवन (स्वसन्तान) खड़ा करता है, वैसे ही बाह्य जगत् (पर- सन्तान और भौतिक जगत् ) से सम्बन्ध भी जोड़ता है |
चयन प्रक्रिया
प्राकृत रूप में व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि चयन की स्वतन्त्र प्रक्रिया से वह अपने को भला या बुरा बनाता है । उसी प्रक्रिया से आन्तर और बाह्य जगत् के बीच एक ऐसा समान सम्बन्ध-सूत्र जोड़ता है, जो दोनों को एक दूसरे पर निर्भर रखे हुए है । बौद्धों का जन्मान्तर-विश्वास उन्हें परलोक की कल्पना करने पर विवश करता है । किन्तु उन सभी लोकों का व्यक्ति से सम्बन्ध मात्र रागात्मक है । इसलिए इन लोकों से सम्बन्धित व्यक्ति की गति या स्थिति आदि की परम्परानुसार व्याख्या भी उसके रागात्मक सम्बन्धों के बीच ही सम्भव होती है । लोक-संस्थानों का यदि पौराणिक रूप छोड़ दें तो उसका विभाजन वास्तव में व्यक्तित्व का अनेक स्तरों में वर्गीकरण है, जो व्यक्तित्व की चयन प्रक्रिया से बाहर नहीं है । स्थूल रूप में वर्तमान जीवन जिस लोक से सम्बन्धित है, उसे कामलोक कहते हैं । वास्तव में वह भी जगत् की केवल प्राकृतिक विचित्रताएँ नहीं है, अपितु मनुष्य के राग और सङ्कल्पों का ऐसा समूह है, जो घनिष्ठ रूप में व्यक्तित्व के गठन से सम्बन्धित है । काम भूमि का व्यक्ति अपने कामराग से क्रमशः विमुक्त होते हुए उत्तरोत्तर उच्च भूमियों (व्यक्तित्व के स्तर) के श्रेष्ठतर उदार गुणों का परिग्रह कर अकुशल धर्मों को समाप्त करते हुए वर्तमान कामभूमि में आर्यत्व के जीवन की प्रतिष्ठा कर सकता है । इस प्रकार श्रेष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण का क्षेत्र इहलोक और वर्तमान जीवन बन जाता है, जो उसकी स्वतन्त्र चयन प्रक्रिया पर निर्भर है ।
व्यक्ति एवं लोक का सम्बन्ध-सूत्र
अन्तर्जगत् और बाह्य जगत् का सम्बन्ध-सूत्र कर्म है । अपराध एवं दण्ड, सच्चारित्र्य और पुरस्कार की व्यवस्था उसी से होती है, क्योंकि कर्म से भिन्न कोई
परिसंवाद - २
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