Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
बौद्धदृष्टि में व्यक्ति, लोक तथा सम्बन्ध
जगन्नाथ उपाध्याय चिन्तन की दिशा
बौद्धदर्शन का प्रस्थान-बिन्दु जगत् के कर्ता की खोज नहीं है, जिसमें समुद्र, वन, पर्वत, पशु-पक्षी आदि चराचर हैं, अपितु साक्षात् मनुष्य का जीवन और उसकी समस्याएं हैं। क्या कुशल एवं श्रेष्ठ है ? सम्यक्त्व क्या है ? जिसके आधार पर आचार और विचारों की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया जाए। पाप और पुण्य क्या है ? उसके आकलन में व्यक्ति और उसके सम्बन्धों के परिवेश का क्या महत्त्व है ? इस प्रकार के नीतिगत प्रश्नों के प्रसंग में व्यक्ति और जगत् की व्याख्या करना बौद्धचिन्तन की मुख्य धारा है। बौद्धदर्शन का प्रधान क्षेत्र नीति-मीमांसा और ज्ञान-मीमांसा है, पदार्थशास्त्रीय विवेचन या अचिन्त्य-शक्तियों की खोज नहीं। उनके चिन्तन के पीछे प्रेरणा है-चारों दिशाओं में फैली हुई दुःखी जनता के दुःखों का निदान और निवारण के उपायों का अन्वेषण करना। वर्तमान जीवन की विवशता क्लेश है और उसका पुरुषार्थ क्लेशनिवारण है। दुःख और उसके कारक प्रायः सभी में समान हैं, इसलिए कोई वजह नहीं है कि उन कारणों के निवारण में व्यक्ति अपने को न लगाए
और अन्य लोगों को भी उसके लिए प्रेरित न करे। इस नैतिक आदर्श से अनुप्राणित होकर जो चिन्तन प्रारम्भ हुआ, उसकी प्रमुख दिशा है व्यक्ति के चित्त को कलुषित करने वाली प्रवृत्तियों से उसे बचाना, उसमें ऐसी संकल्प-शक्ति जगाना, जिससे वह जिन सीमाओं में घिरा है, उससे निकलकर शुभ-विरोधी शक्तियों को समाप्त करने में सक्षम हो सके। भारतीय दर्शनों के बीच विचार की यह दिशा बहुत कुछ भिन्न है, इसलिये जीव और जगत् के अस्तित्व की व्याख्या और उसकी कारणता के निर्धारण में उसका विशेष प्रकार का योगदान है। इस पृष्टभूमि में बौद्धों द्वारा जीव, जगत् और उसके सम्बन्धों का जिस प्रकार से विवेचन हुआ, उससे चिन्तन के आधुनिक परिवेश में भी व्यक्ति, समाज और उसके सम्बन्धों की व्याख्या करने के लिए अवसर प्राप्त हो जाता है।
व्यक्ति और समाज के बीच व्यक्ति ही वह बिन्दु है, जिसकी रचना और उसके संस्कार और विकारों के अनुबन्ध में समाज का अध्ययन किया जा सकता है। किन्तु व्यक्तित्व के गतिहीन एवं रूढ़ होने की स्थिति में समाज के परिवर्तनशील प्रभावों का
परिसंवाद-२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org