Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलास ____ "विवाहमें सप्तपदीके अवसरपर एक छोटेसे पत्थरके टुकड़ेके ऊपर पैर रखनेमें, गिर जानेके भयसे जिसने मेरा हाथ पकड़ लिया था, वही तुम आज मुझे छोड़कर स्वर्गमें कैसे चढ़ रही हो यह सोचकर हृदय विदीर्ण हो रहा है।" ___ यदि किसी यवनीपर वे आसक्त भी होते तो वह इसप्रकार उनके साथ सप्तपदी संस्कार कराती, यह सोचा भी नहीं जा सकता। पद्यसंख्या
इस ग्रन्थको कविने चार भागोंमें विभक्त किया है १-प्रास्ताविक या अन्योक्तिविलास, २-शृंगारविलास, ३-करुणविलास और ४-शान्तविलास । प्रत्येक विलासका विषय उसके नामसे ही स्पष्ट हो जाता है। तत्तद्विषयक अपनी स्फुट रचनाओंका, जिनमेंसे अधिकांश पंडितराजके अन्य ग्रन्थोंमें आचुकी हैं, उन्होंने इसमें संकलन किया है। ___ श्री लक्ष्मण रामचन्द्र वैद्यने अपने संस्करणमें प्रास्ताविक विलासमें १२९, शृङ्गार विलासमें १८३, करुणमें १९, और शान्तविलासमें ४५ पद्यों को लिया है। जो सब मिलाकर ३७६ होते हैं। किन्तु हमारे निजी संग्रहमें संवत् १८७४ की हस्तलिखित शुद्ध और प्रामाणिक पुस्तकमें, जिसको आदर्श मानकर हमने प्रस्तुत संस्करण तैयार किया है-प्रथममें १०१, द्वितीयमें १०२, तृतीयमें ११ और चतुर्थ में ३२ पद्य हैं । इस प्रकार कुल संख्या २५४ होती है। निर्णयसागरस बम्बईसे प्रकाशित अच्युतरायकी मोदक टीका सहित प्रतिमें, श्रोपरांजपेके संस्करण में तथा श्रोहरदत्त शर्माको चषकटीका सहित पूनासे प्रकाशित पुस्तकमें भी यही संख्या ली गई है। अतः हमें यही प्रामाणिक संख्या प्रतीत होती है। प्रास्ताविक या अन्योक्तिविलास
पूर्व कहा जा चुका है कि पण्डितराजका समकालीन विद्वरसमाज उनके अतुल बुद्धिवैभव तथा बाह्यवैभव के कारण उनसे ईर्ष्या करता था।
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