Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे
यस्मिन्देशे निर्गुणे निर्विवेके न क्वापि स्याद्वेदशास्त्रस्य चर्चा । प्राज्ञः प्रज्ञाहीनवत्तत्र तिष्ठेत् "कीजै काणे देशमें आँख कानी ॥"
कौवे और कोकिलका स्वाभाविक बैर है; क्योंकि कोकिलका शब्द सबको प्रिय लगता है और कौवेका कर्णकटु। साथ ही यह भी प्रसिद्ध है कि कोकिल प्रसव होनेपर अपने अंडोंकों कौवेके घोसलेमें रख देती है। वह मूर्ख उसे अपना ही अंडा समझकर पोसता है। जब पंख हो जाते हैं तो वह उड़कर अपने सजातीयोंमें मिल जाता है। और कौवा पछताता रह जाता है । इसीसे इनका स्वाभाविक वैर है।
कौवे अभी तक कोयलको भी कौवा ही समझे हैं, अतः इस पद्यमें भ्रान्तिमान् अलंकार है-“साम्यादतस्मिंस्तबुद्धिः भ्रान्तिमान प्रतिभोत्थितः” ( सा० द०)। आर्यागीति छन्द है ( लक्षण दे० श्लोक १३ ) ॥२३॥
तरुकुलसुषमापहरां जनयन्ती जगति जीवजातातिम् । केन गुणेन भवानीतात ! हिमानीमिमां वहसि ॥२४॥
अन्वय-भवानीतात ! तरुकुलसुषमापहरा, जगति, जीवजाताति, जनयन्तीम् , इमां, हिमानीं, केन, गुणेन, वहसि ।
शब्दार्थ-हे भवानीतात = हे पार्वतीके पिता ( हिमालय ! ) । तरुकुलसुषमापहरां=वृक्षसमूहकी अतिसुन्दर शोभाको नष्ट करनेवाली । जगति = संसारमें। जीवजाताति = प्राणिमात्रकी पीड़ाको । जनयन्ती = उत्पन्न करती हुई। इमां हिमानी = इस हिम-राशिको । केन गुणेन = किस गुणके कारण । वहसि = धारण करते हो।
टीका-भवः = शिवः तस्य स्त्री भवानी = पार्वती ( भव + ङीप् + आनुक् आगम) तस्याः तात: पिता, तत्सम्बुद्धौ हे भवानीतात हे हिमालय ! तरूणां-वृक्षाणां कुलं-समूहः, ( कुं लाति कु + /ला + कः) तस्य सुषमा
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