Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्योक्तिविलासः १३५ टिप्पणी-दुर्जन-संगतिकी पूर्व पद्योंमें निन्दा कर चुके हैं, यदि कोई कहे कि 'दुर्जनसंगतिसे दुर्बुद्धि आती है और दुर्बुद्धिसे मनुष्य पापकी ओर प्रवृत्त होता है इसीलिये वह निन्दनीय है, किन्तु पाप हो जानेपर भी 'धर्मेण पापमपनुदति' इस सिद्धान्तके अनुसार धर्म करके पापकी निवृत्ति हो सकती है । अतः यदि क्षणिक दुःसङ्गका भी अनुभव कर लें तो क्या हानि है ?" इसी प्रश्नका सीताकी अन्योक्ति द्वारा निवारण करते हैं कि जानबूझकर दुर्जन-संगतिको कौन कहे; अनिच्छासे भी दुर्जनके संसर्गमें आनेपर बेचारी सीताकी क्या दशा हो गयी थी ? जो सीता खरगोशके बच्चेको देखकर भी डरती थी और भयहारी पतिदेवसे लिपट जाती थी, उसीको दुर्जन रावणके संसर्गमें आज भयानक राक्षस घेरे खड़े हैं। भयहर्तुः, विशेषणसे रामचन्द्रजीका भवभयहारित्वेन उत्कर्ष सूचित होता है, साथ ही यह भी ध्वनित होता है कि अत्यन्त ऐश्वर्यमदसे भी दुर्जन संगति करना अहितकर ही होता है। अपने स्वामीकी जिस बलवत्ताके भरोसे सीता खरगोशके बच्चेसे भी डरकर उनसे लिपट जाती थी, आज इन प्रचण्ड राक्षसोंसे घिरनेपर वह भयहारित्व सीताके किस काम आ रहा है ? __इस पद्यको रसगंगाधरमें विषम अलंकार माना है। लक्षणअननुरूपसंसर्गो विषमम् । यहाँ दिव्य सौन्दर्यवती सीताका राक्षसोंसे संसर्ग अननुरूप है। रसगंगाधरमें पाठ इस प्रकार है-"अहो सेयं सीता शिव शिव परीता श्रुतिचलत्करोटीकोटीभिर्वसति खलु रक्षोयुवतिभिः ॥" शिखरिणी छन्द है ॥ ७८ ॥ अपकारकी भावनावाला समर्थ भी नष्ट हो जाता है पुरो गीर्वाणानां निजभुजबलाहोपुरुषिकामहो कारं कारं पुरभिदि शरं सम्मुखयतः । For Private and Personal Use Only

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