Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः
१६७ टिप्पणी-इस कलियुगमें गुणवानोंका आदर नहीं होता । सुन्दर पदार्थ ही प्रायः शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, यह समयका ही फेर है । इसमें किसीका दोष नहीं। यही इस श्लोकका भाव है। इसको रसगंगाधरमें पर्यायोक्त अलंकार माना है । पण्डितराजका कथन है-यहाँ यद्यपि "रमणीय पदार्थोंको कलियुग खा जाता है" इस कविप्रौढोक्तिसिद्ध वस्तुसे “यदि मरना चाहते हो तो गुणवान् बननेका प्रयत्न करो" यह वस्तु व्यङ्गयत्वेन प्रतीत होती है, तो भी वाच्य अर्थकी अपेक्षा व्यङ्गय अर्थमें सुन्दरता न होनेसे वह गौण हो गया है । जिन अलंकारोंके वाच्यार्थमें ही सौंदर्य होता है वे प्रायः अपने अन्तर्गत प्रतीयमान अर्थको पछाड़ देते हैं। इसीलिए यहाँ पर्यायोक्त ही अलंकार है। लक्षण-विवक्षितार्थस्य भङ्गयन्तरेण प्रतिपादनं पर्यायोक्तम् (रसगंगा०) यहाँ "मरना चाहते हो तो गुणवान् बननेकी चेष्टा करो" यही कविका विवक्षित व्यङ्गयार्थ है जिसको दूसरे प्रकारसे कहा गया है । शाईलविक्रीडित छन्द है ।।९।। सच्चा प्रेमी नहीं, तो तब शून्य हैधूमायिता दशदिशो दलितारविन्दा
देहं दहन्ति दहना इव गन्धवाहाः । त्वामन्तरेण मृदुताम्रदलाम्रम -
गुञ्जन्मधुव्रत मधो किल कोकिलस्य ॥६६॥ अन्वय-मृदुताम्रदलाम्रमजुगुञ्जन्मधुव्रत, मधो, त्वाम् , अन्तरेण, कोकिलस्य, दलितारविन्दाः, दश दिशः, धूमायिताः, गन्धवाहाः, दहनाः इव, देह, दहन्ति, किल ।
शब्दार्थ - मृदुताम्रदलाम्र = कोमल लाल-लाल कलियोंवाले आममें,
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