Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 206
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्योक्तिविलासः १७३ किमहं वदामि खल दिव्यतमं गुणपक्षपातमभितो भवतः। गुणशालिनो निखिलसाधुजनान् यदहर्निशं न खलु विस्मरसि ॥१॥ ___ अर्थ-हे दुर्जन ! मैं तुम्हारे इस अत्यन्त सुन्दर गुणपक्षपातके विषयमें क्या कहूँ, जोकि सभी गुणवान् सज्जनोंको तुम रात-दिन कभी भी नहीं भूलते। टिप्पणी-खल निरन्तर सज्जनोंका अनिष्ट ही सोचा करते हैं । इसलिये रात-दिन उनके ध्यानमें वे गुणीजन रहते हैं जिनकी बुराई करनी है। गुणपक्षपात ( गुणोंका पक्ष लेना ) का गुणपक्षका पात ( अर्थात् गणवानोंके पक्षका विरोध ) यह व्यंग्य अर्थ है । यह ब्याजनिन्दा अलंकार है ॥ १॥ रे खल तव खलु चरितं विदुषामग्रे विचित्र्य वक्ष्यामि । अथवालं पापात्मन् कृतया कथयापि ते हतया ॥२॥ अर्थ—अरे दुर्जन ! निश्चय ही तुम्हारे चरितको मैं विद्वानोंके समक्ष चित्रित करूंगा । अथवा अरे पापात्मा ! तुम्हारी इस नीच कथाका उल्लेख करना भी उचित नहीं। टिप्पणी-विद्वानोंके समक्ष खलका चरित्र-चित्रण करनेका अभिप्राय था कि संभवतः ये तुम्हारे उद्धारका कोई मार्ग बतलाते, किन्तु तुम्हारे तो कर्म इतने दूषित हैं कि उन्हें मुखसे निकालना भी लज्जास्पद है। खलचरित्रका वर्णन करना स्वीकार करके उसीका निषेध कर दिया है, अतः प्रतिषेध अलंकार है ॥ २ ॥ आनन्दमृगदावाग्निः शीलशाखिमदद्विपः ।। ज्ञानदीपमहावायुरयं. खलसमागमः ॥३॥ अर्थ-आनन्दरूपमृगके लिए वनाग्नि, शील ( सत्स्वभाव ) रूप वृक्षके लिए उन्मत्त हाथी और ज्ञानरूप दीपकके लिए आँधीके समान यह खलोंकी सङ्गति है। For Private and Personal Use Only

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