Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्योक्तिविलासः १७५ अर्थ —तुमने बहुत बड़ा कार्य किया और स्वच्छ यश कमा लिया । हे मित्र ! हम जबतक जियेंगे तुम्हें खूब आशीर्वाद देंगे । टिप्पणी- यह व्यङ्गयोक्ति है किसी अपकारीके प्रति । इसका तात्पर्य है कि तुमने हमारा इतना बड़ा अपकार किया है जिससे तुम्हारी दुष्कीति फैल चुकी है । हम जबतक जीवित रहेंगे तुम्हारे इस दुष्कृत्यको भूल नहीं सकते । तुलना० उपकृतं बहु तत्र किमुच्यते सुजनता भवता प्रथिता परम् । विदधदीदृशमेव सदा सखे सुखितमास्स्व ततः शरदां शतम् ॥ ६ ॥ अविरत परकार्यकृतां सतां मधुरिमातिशयेन वचोऽमृतम् । अपि च मानसमम्बुनिधिर्यशो विमलशारदपार्वणचन्द्रिका ||७|| अर्थ - निरन्तर परोपकार करनेवाले सज्जनोंकी वाणी मिठास में अमृतको मात करती है और उनका मन समुद्र सा ( अथाह गम्भीर ) होता है । उनकी कीर्ति शरत्कालीन पूर्णिमाकी चाँदनीकी भाँति फैलती है ॥ ७ ॥ निर्गुणः शोभते नैव विपुलाडम्बरोऽपि ना । आपातरम्यपुष्पश्रीशोभितः शाल्मलिर्यथा ॥ ८ ॥ अर्थ - अत्यन्त आडम्बर करनेसे भी गुणहीन मनुष्य शोभा नहीं पा सकता, जैसे सुन्दर लाल-लाल फूलोंसे भरपूर सजा हुआ सेमरका पेड़ । टिप्पणी- मनुष्यका वास्तविक भूषण तो गुण है । यदि गुण ही नहीं तो वेषभूषा आदिसे कबतक आडम्बर बन सकेगा । जैसे सेमरका पेड़ जब फूलोंसे लदा रहेगा तब कुछ अच्छा तो अवश्य लगेगा, पर फलहीन होनेसे उसका उपयोग ही क्या होगा ? कोई उसके पास जायेगा ही नहीं । पूर्णोपमा अलंकार है ॥ ८ ॥ For Private and Personal Use Only

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