Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६१
अन्योक्तिविलासः चंचल हो तो भी जो सरस रहती है, ऐसी सरोजिनीको भला, तुम किस कारण त्याग रहे हो।
टिप्पणी-भौंरा मलिन ( काला ) है फिर भी कमलिनी राग पूर्ण ( रंगीन ) रहती है । भौंरा बड़ बड़ाता ( गुनगुनाता) रहता है और कमलिनी खिली रहती है। भौंरा चपल ( चंचल = इधर-उधर घूमता) रहता है, कमलिनी रससे भरी रहती है । ऐसी कमलिनीको हे भ्रमर ! तुम क्यों छोड़ देते हो ? भ्रमर और कमलिनीके इस व्यवहारसे किसी ऐसे नायक-नायिकाके व्यवहारको कल्पना होती है जिसमें नायक मलिन ( मैले चित्तवाला = कपटी ) है, फिर भी नायिका उसपर अनुराग रखती है । नायक बहुत बड़बड़ाता रहता है तब भी नायिका हँसमुख रहती है । नायक अत्यन्त चपल है फिर भी वह रसीली बनी रहती है ( रुष्ट नहीं होती)। इसलिये हमारे विचारसे यह समसोक्ति अलंकार है । किन्तु पंडितराजने रसगंगाधरमें इसे अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकारके उदाहरणमें ही रक्खा है । उनका कहना है कि इसमें अप्रस्तुत भ्रमरके व्यवहारसे प्रस्तुत नायिकाके वृत्तान्तकी प्रतीति होती है। गीति छन्द है। लक्षण देखिये श्लोक १३ ।। ९५ ॥ मांगना किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं - स्वार्थ धनानि धनिकात्प्रतिगृह्णतोऽपि
स्वास्यं भजेन्मलिनतां किमिदं विचित्रम । गृह्णन्परार्थमपि वारिनिधेः पयोऽपि
मेघोऽयमेति सकलोऽपि च कालिमानम् ॥६६॥ अन्वय-धनिकात् , स्वार्थम् , अपि, धनानि, प्रतिगृह्णतः, स्वास्य, मलिनतां, भजेत् , इदं, किं, विचित्रम् , वारिनिधेः,
For Private and Personal Use Only