Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६४
भामिनी-विलासे ___ टीका—पटीराज्जातः पटीरजः तत्सम्बुद्धौ हे पटीरज हे मलयज चन्दनेत्यर्थः । तव इति सर्वत्र सम्बन्धः। जनकः = उत्पादकः । स्थाणुविशेषः = स्थिरत्वेनोपलक्षितः पर्वतविशेष इत्यर्थः। एतेन विशेषणेन जडत्वं सूचितम् । जातिः = कुलं, काष्ठं । सङ्गः = सहवासः । भुजङ्गमैः = सर्पः । खलैरित्यपि ध्वन्यते । तथापि = एवं भूतोऽपि । कुलजातिसङ्गसौष्ठवरहितोऽपीत्यर्थः । त्वम् इति शेषः। स्वस्य गुणैः = निजसौरम्यशीतलत्वादिभिर्धर्मविशेषैः । एव । महिमानं = औत्कट्यम् । यातः = प्राप्तः असि । यतः देवैरपि सादरं मूनि धार्यसे इतिभावः ।
भावार्थ हे चन्दन ! एक जड़ पदार्थ मलयाचल पहाड़पर तुम उत्पन्न हुए हो, अन्य काष्ठोंकी तरह एक काष्ठ तुम भी हो; प्रतिक्षण भुजङ्गोंसे घिरे रहते हो, फिर भी अपने महान् गुणोंसे तुम इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर लिये हो।
टिप्पणी-चन्दनके प्रति उक्त इस अन्योक्तिसे कविने यह भाव व्यक्त किया है कि किसी व्यक्तिको प्रतिष्ठाको बढ़ाने में उसके पूर्वज, वंश या सङ्गतिका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। केवल स्वकीय विशिष्ट गुण ही उसकी महत्ताको जगद्विश्रुत कर देते हैं। सामान्य पहाड़ोंकी भाँति मलयाचल भी एक पहाड़ है, जहाँ चन्दन उत्पन्न होता है। अन्य लकड़ियोंकी तरह वह भी एक लकड़ी ही है, भयंकर साँसे प्रतिक्षण घिरा रहता है, फिर भी उसकी चाह देवताओं तकको रहती है । मलयाचलमें उत्पत्ति आदि कोई भी उसकी इस महनीयतामें कारण नहीं है। केवल अनुपम सुगन्ध, अतिशय शीतलता आदि उसके स्वकीय गुणोंने ही उसे इस प्रतिष्ठाके योग्य बनाया है । इस पद्यसे यह भी ध्वनित होता है कि भाग्यसे नहीं, पुरुषार्थसे ही मनुष्य महत्ताको प्राप्त करता है। क्योंकि अच्छे या बुरे घर या वंशमें उत्पत्ति और अच्छी या बुरी संगति तो भाग्यसे पूर्व कर्मानुसार मिलती है, किन्तु मनुष्य अपने उत्कट पुरुषार्थसे बड़ीसे बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है ।
For Private and Personal Use Only