Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः
१३३ विषये । मूछों गतः = केनचिद्युक्तिविशेषेण स्तस्भितः । मृतः भस्मीभूतः । वा। पारदः = तदाख्यः। रसः = रसायनं । निदर्शनम् = उदाहरणं वर्तते इति शेषः।
भावार्थ-अत्यन्त विपत्तिग्रस्त होनेपर भी गुणवान् व्यक्ति दूसरोंका उपकार ही करता है । मूछित या मृत पारद रस इसका उदाहरण है।
टिप्पणी-सज्जनकी यह विशेषता होती है कि वह स्वयं विपत्ति सहता हुआ भी अपकारीका उपकार ही करता है । ( देखिये पद्य ६८ भी ) इसलिये सत्संग ही करना चाहिये। इसी भावको उक्त पद्यद्वारा व्यक्त किया है। इस विषयपर पारेका दृष्टान्त दिया है। पारेको किसी भी
औषधमें प्रयुक्त करनेसे पूर्व उसका कुछ विशेष प्रक्रिया द्वारा मारण या मूर्छन किया जाता है अर्थात् उसे भस्म या स्तम्भित कर दिया जाता है जिससे उसके गुण अमृततुल्य हो जाते हैं। यही उसकी सज्जनता है कि मारण या मूर्छन करनेवालेको वह अमृततुल्य गुण दर्शाता है ।
यह भी रसगंगाधरमें उदाहरण अलंकारमें दिया गया है। उपगीति छन्द है। गीतिका प्रत्येक चरण आर्याके पूर्वार्द्ध जैसा होता है और उपगीतिका उत्तरार्द्ध जैसा अर्थात् इसके पादोंमें १२।१५ मात्राएँ होती हैं ॥७७॥ परिस्थिति क्या नहीं करा देतीवनान्ते खेलन्ती शशकशिशुमालोक्य चकिता
भुजप्रान्तं भर्तुर्भजति भयहर्तुः सपदि या । अहो सेयं सीता दशवदननीता हलरदैः
परीता रक्षोभिः श्रथति विवशा कामपि दशाम् ॥७॥
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