Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे सन् । उदारैः= विस्तृतैः । करैः = किरणः । कैरविणीनां-- कुमुदिनीनां कुलानि = समूहानि इति तानि । विकासयति = विकचानि करोतीत्यर्थः इति । कथय = वद । त्वमेव इति शेषः ।
भावार्थ-सज्जन पुरुष बिना किसीके कहे ही हितकर कार्यों द्वारा सारे संसारको अत्यन्त आनन्दित कर देते हैं। तुम्हीं कहो कि चन्द्रमा किसके कहनेसे अपनी विस्तृत किरणोंसे कुमुदिनीपुञ्जोंको विकसित कर देता है।
टिप्पणी-दुर्जन कितनी ही दुर्जनता करे तो भी सज्जनको खिन्न न होकर सबकी हितकामना ही करनी चाहिये । क्योंकि जैसे दुष्टका स्वभाव ही दुष्टता करनेका होता है, उसे किसीकी प्रेरणाकी आवश्यकता नहीं रहती, ऐसे ही सज्जन भी स्वभावतः दूसरोंका हित ही चाहते हैं । उनसे उसके लिये प्रार्थना नहीं करनी पड़ती। इसी अर्थको चन्द्रमाका उदाहरण देकर पुष्ट करते हैं कि तुम्हीं कहो चन्द्रमा जो अपनी किरण फैलाकर कुमुदिनी-कुलको विकसित करता है, उसके लिये उससे कौन प्रार्थना करने जाता है। ____ यह अन्योक्ति किसी ऐसे व्यक्तिको लक्ष्य करके कही गयी है जो दुर्जनोंकी दुष्टतासे तंग आकर प्रतीकारकी भावना करने लगा हो । रसगंगा. धरमें यह पद्य दृष्टान्त अलंकारका उदाहरण है। पण्डितराजके शब्दोंमें दृष्टान्तका लक्षण है-"प्रकृतवाक्यार्थघटकानामुपमादीनां साधारणधर्मस्य बिम्बप्रतिबिम्बभावे दृष्टान्तः" जैसे प्रतिवस्तूपमा साधारणधर्मका दो वाक्यार्थोमें वस्तु-प्रतिवस्तुभाव होता है, ऐसे ही दृष्टान्तमें बिम्बप्रतिबिम्बभाव होता है । यहाँ 'सत्पुरुष'-'इन्दु', "अनुक्त एव'-"आराधितः कथय केन' तथा 'आनन्दयति'--'विकासयति' इनमें बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है । वसन्ततिलका छन्द है ॥७३॥
परार्थव्यासनादुपजहदय स्वार्थपरतामभेदैकत्वं यो बहति गुणभूतेषु सततम् ।
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