Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनी-विलासे विकारः ) मषी इति मूर्धन्योपधोऽपि भवति तत्र/मष् हिंसायां धातुः) दधाति = धारयति । विधुः = चन्द्रः, अपि, कलत = चिह्न लाञ्छनमितियावत्, ( कं = ब्राह्मणमपि लङ्कयति = हीनतां गमयतीति, क./लकि गतौ + अण्, कलङ्काको लाञ्छनं च चिह्न लक्ष्म च लक्षणम्-अमरः ) भजतेतराम् = स्वीकरोतीत्यर्थः । एवमेव क्षितीन्द्राः = नृपाः अपि, पिशुनजनं = खलजनं ( पिंशति, / पिंश अवयवे + उनन्; उणादिः) । बिभ्रति = धारयन्ति । खलु = निश्चयेन इत्यर्थः ।
भावार्थ-चन्दन विषधर सोको लपटाये रहता है। दीपक काजल. समूहको सिरपर धारण किये है। चन्द्रमा सदा कलङ्कको लिये रहता है। इसी प्रकार राजागण भी पिशुनजनोंको पाले रहते हैं।
टिप्पणी-६५ वें पद्यमें खलोंको सर्वाधिक निन्दनीय कहा है और यह भी कहा है कि बड़े-बड़े राजाओंके यहाँ और पुण्यक्षेत्रोंमें साधुओंका हनन करनेवाले ये पिशुन रहते हैं । इसपर शङ्का होती है कि प्रजाका पालन करनेवाले और धर्मप्राण ये नृपति या सम्पन्न व्यक्ति इनका संरक्षण क्यों करते हैं ? इसीके उत्तरमें यह पद्य है-जब दिव्यपदार्थ भी दोषमुक्त नहीं रह पाते तब मानवकी तो बात ही क्या है । चन्दन साँसे घिरा रहता है, चन्द्रमा कलङ्कके बिना नहीं रह सकता, दीपशिखासे कज्जल निकलता है। प्रायः सभी उत्तम व्यक्ति या पदार्थ किसी न किसी दोषसे दूषित रहते ही हैं। ऐसे ही सज्जन भी खलोंसे घिरे रहते हैं। दूसरी बात यह भी है कि खलोंसे घिरे रहनेके कारण सज्जनोंकी महत्ता या उदारता सीमित भले ही हो जाती है; किन्तु दूसरों द्वारा अकारण नष्ट होनेसे वे बच जाते हैं। जैसे चन्दन यदि विषधरोंसे लिपटा न हो तो प्रतिक्षण मनुष्य उसे काटता रहे । इसलिए राजाओं या सम्पन्न व्यक्तियोंको भी इनका संरक्षण आवश्यक हो जाता है ।
इस पद्यको भी रसगंगाधरमें प्रतिवस्तूपमा अलंकारके उदाहरणोंमें रक्खा है । यह मालाप्रतिवस्तूपमा है ।
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