Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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भामिनीविलासे शब्दार्थ गुरुणा = गुरुओंकी । परुषाक्षराभिः = कठोर वर्णोंवाली। गोभिः = वाणियोंसे । तिरस्कृताः = धिक्कार हुए। नराः = मनुष्य । महत्त्वं यान्ति = महत्ताको पा जाते हैं। अलब्ध = नहीं पाई है, शाणोत्कषणः = सानपरकी रगड़ जिन्होंने, ऐसे । मणयः = रत्न । जातु-कभी भी । नृपाणां मौलौ = राजाओंके किरीटपर । न वसन्ति = नहीं रहते।
टीका-गुरूणां = सर्वविदर्दा विदुषां; ( गृणाति = उपदिशतीति, /गृ शब्दे + कु:; उणादिः ) परुषाणि %D निष्ठुराणि अक्षराणि = वर्णाः यासां ताभिः । न तु तादृगाभिरपि इति अक्षरशब्देन ध्वायते । गीर्भिः= वाग्भिः, तिरस्कृताः = धिक्कृताः । अपि, नराः = मनुष्याः, महत्त्वम् =
औन्नत्यं, यान्ति = गच्छन्ति । दृष्टान्तेन तदेव पुष्टीकरोति-अलब्ध = न प्राप्तं शाणेषु = निकषेषु उत्कषणं = घर्षणं यैस्ते एवंभूताः मणयः= रत्नानि ( मण्यते, /मण शब्दे + इन्; उणादिः ) जातु=कदाचिदपि नृपाणां = राज्ञां मौलौ = किरीटे ( मूलस्यादूरे भवः मूल + इञ् ) न वसन्ति = न निधीयन्ते ।
भावार्थ-सर्वज्ञ गुरुओंको कड़ी फटकार जिनपर पड़ती है वे ही मनुष्य महत्त्वको प्राप्त करते हैं। बिना खरादपर चढ़ी हुई मणियाँ राजाओंके किरीटपर कभी नहीं रह सकतीं।
टिप्पणी-महात्माओंका क्रोध ही अच्छा नहीं होता, प्रत्युत उनकी फटकार भी मनुष्यको महान् बना देती है। बड़ोंकी फटकारे तभी पड़ती है जब कोई अक्षम्य अपराध होता है। इससे मनुष्यको अपनी त्रुटियोंको समझनेका अवसर मिलता है, यही महान् बननेकी प्रथम सीढ़ी है । परुषाक्षराभिः से स्पष्ट होता है कि उस फटकारके अक्षर मात्र ही कठोर होते हैं। उसके पीछे गुरुओंकी भावना बुरी नहीं होती और न अर्थ ही ऐसा गम्भीर और भयावह होता है। तात्पर्य यह है कि बिना तिरस्कार सहें मनुष्य महान नहीं बन सकता, इसी अर्थको 'दृढ़ करते हैं-बिना खरादपर चढ़ी हुई मणियाँ राजमुकुटोंपर रहने योग्य नहीं होती। मौलौ में मौलिशब्द अमर
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