Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः महान् व्यक्ति किसी प्रयोजनसे उपकार नहीं करते
नापेक्षा न च दाक्षिण्यं न प्रीतिनं च संगतिः। तथापि हरते तापं लोकानामुन्नतो घनः ॥३७॥
अन्वयन, अपेक्षा, न च, दाक्षिण्यं, न, संगतिः, तथापि, उन्नतः, घनः, लोकानां तापं, हरते।
शब्दार्थ-अपेक्षा न = ( किसी प्रकारके प्रत्युपकार की) इच्छा नहीं है । दाक्षिण्यं = निपुणता । न च = भी नहीं है । प्रीति: न= ( किसीसे ) स्नेह भी नहीं है। संगतिश्च न = और किसीका साहचर्य भी नहीं है । तथापि = तो भी । उन्नतः महान् ( अत्यन्त ऊँचाईपर रहनेवाला ) घनः = मेघ । लोकानां = प्राणियोंके । तापं हरते = सन्तापको मिटाता है। _____टोका-यद्यपि घनस्य । अपेक्षा = ईहा, न। अस्तीति शेषः । दाक्षिण्यं = कौशलं च न अस्ति, प्रीतिः = अनुरागः । अपि न । न च संगतिः = सत्सङ्गः अस्ति । तथापि = एवंभूतोऽपि । अयम् । उन्नतः = उपरिगतः । घनः = मेघः । लोकानां = जनानां सन्तप्तानामिति यावत् । तापं = दुःखं हरते = निवारयति ।
भावार्थ-यद्यपि इसको न किसी की अपेक्षा है, न इसमें कोई कौशल ही है, न किसीसे विशेष अनुराग रखता है और न कोई इसका सहायक है, तो भी यह उन्नत मेघ लोगोंके सन्तापको हरण करता है।
विशेष-सज्जनकी महत्ता यही है कि वह अकारण ही बिना किसी प्रत्युपकारकी भावनाके दूसरोंका उपकार करता है, यही इस मेघान्योक्तिसे व्यक्त होता है । अत्यन्त ऊँचाईपर चढ़े हुए मेघको न तो किसी वस्तुकी आकांक्षा रहती है ( अर्थात् मेघ पानी बरसाकर उसके बदले में किसीसे कुछ चाहता नहीं ) न उसमें दाक्षिण्य चतुरता ही है। वह एक जड़ पदार्थ है लोगोंकी इस भावनाको समझनेकी शक्ति उसमें नहीं कि पानीके बिना लोग तरस रहे हैं अतः मुझे वर्षा कर देनी चाहिये । तुलना०
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