Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan
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अन्योक्तिविलासः
११७ भवतीति अकृतपूर्वः तम् = विचित्रमिति यावत् । उदारभावम् = औदार्य । विस्तारयति-प्रसारयति । किल इति निश्चयेन । दृष्टान्तेनोक्तं समर्थयति कालागुरुः-चन्दनविशेषः । (न गुरु यस्मात् तद् अगुरु, कालं च तदगुरु च । कालागुर्वगुरु स्यात्-अमरः) । दहनस्य = वह्नः । मध्यगतः= मध्ये प्रक्षिप्तः सन् । समन्तात् = चतुर्दिक् । लोकोत्तरं लोकातिशायिनं । परिमलं = सुगन्धं । प्रकटीकरोति = आविर्भावयति । ___ भावार्थ-श्रेष्ठ पुरुष अपनी उदारताको विपत्तिकालमें और भी अधिक बढ़ा देते हैं । जैसे कि चन्दनको अग्निमें डालनेपर उसकी गन्ध और भी तोव हो जाती है।
टिप्पणी-सत्पुरुष उदार तो स्वभावसे ही होते हैं, किन्तु धैर्यवान् भी होते हैं। क्योंकि विपत्तिकालमें जबकि साधारण व्यक्ति हतबुद्धि हो जाता है, उनकी उदारता और अधिक प्रकट होने लगती है। इसी अर्थको दृष्टान्त देकर समर्थन करते हैं कि चन्दन स्वभावतः सुगन्धवाला पदार्थ है, किन्तु उसे जब आगपर डाला जाय तो उसकी गन्ध और भी तीव्रतर होकर सारे वायुमण्डलको सुरभित कर देती है।
इस पद्यको पण्डितराजने रसगंगाधरमें प्रतिवस्तूपमा अलंकारके उदाहरणोंमें रक्खा है । प्रतिवस्तूपमाका लक्षण उन्होंने दिया है-वस्तुप्रतिवस्तुभावापन्नसाधारणधर्मकवाक्यार्थयोरार्थमौपम्यं प्रतिवस्तूपमा। अर्थात् जहाँपर एक ही साधारणधर्म; वस्तु और प्रतिवस्तुभावको प्राप्त दो वाक्यार्थोंमें सादृश्य दिखाता है वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलंकार होता है। यदि यही बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो तो दृष्टान्त कहलाता है। वसन्ततिलका छन्द है ॥६८॥ अत्यन्त गुणीका दोष भी गुण हो जाता हैविश्वाभिरामगुणगौरवगुम्फितानां
रोषोऽपि निर्मलधियां रमणीय एव ।
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